राम जन्म स्थल पर, पूज्य रामसेवको के देवलोक गमन पर, ससम्मान श्रद्धांजलि ।
हंसी भी आती है
होती है वेदना भी।
वो संविधान,
जिस पर
मेरे जैसे
राम वाले ने
ना कभी अंगूठा लगाया
ना हस्ताक्षर किये,
महाजन की हुंडी सा
हर सांस पर लगान वसूलता ;
धर्म-निरपेक्षता के (शर्म-निरपेक्षता)
अर्थ, तक नहीं जानता जो
बिठाता है (?)
भिश्तियों और गुलामों को !!
वहाँ
मेरे राम का न्याय होगा।
एक वीभत्स प्रहसन है।।
स्वाहा हो चुके
राम सेवको की लाशो पर
रोटिया सकते दल
राम और रामायण की
प्रासंगिकता को नकारते
वोटो की खातिर (दलाल)
आत्मा तक बेच चुके जो,
वो (?)
पहरे लगाते है।।
जानते नहीं
कितने राम
बसते है
हर हिन्दू ह्रदय में ??
जो जानता है
वो हसता है
अधम वर्णसंकर जमात पर;
जो काबिज है
पदों पर
मीडिया पर
न्यायालयों में।।
चौखट चूमती
अपराधियों
और
बलात्कारियों की
जूठन खाती
लिजलिजी व्यवस्था ;
एक कोढ़ है
मेरे भारत पर।।
और
ये सब
देखते मेरे राम
मौन बैठे है
समुद्र तट पर,
राह माँगते।
और दुष्ट रावण
अट्टहास करता
इसे समझ बैठा है
पराजय।।
अब विभीषण जागे है
अब राम को
क्रोध भी आया है ,
बाण तुणीर से धनुष तक
आते ही ,
सागर देगा
स्वयं राह
ये तय है।
बाकी सब लीला है
और
आज राक्षस
अट्टहास करते है,
क्योंकि
थोड़े ही प्राण बाकी है।।
- जय श्री राम !
source: Tarun's Diary
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हिन्दू धर्म की निशानियों के लिए, लड़कपन में ही जान लुटा चुके वानर वीरो तुल्य पूज्य रामसेवको के देवलोक गमन पर, ससम्मान श्रद्धांजलि ।
"मुझे गर्व है कि मैं राम को मानता हूँ , मुझे संतोष है कि मैं धर्म को जानता हूँ "
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1 टिप्पणी:
आपके अद्भुत लेखन को नमन,बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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