Desh Bhakti ke Geet Vedio

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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है। किन्तु प्रकृति के संसाधनों व उत्कृष्ट मानवीयशक्ति से युक्त इस राष्ट्रको काल का ग्रहण लग चुका है। जिस दिन यह ग्रहणमुक्त हो जायेगा, पुनः विश्वगुरु होगा। राष्ट्रोत्थानका यह मन्त्र पूर्ण हो। आइये, युगकी इस चुनोतीको भारतमाँ की संतान के नाते स्वीकार कर हम सभी इसमें अपना योगदान दें। निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!

स्व आंकलन:

: : : सभी कानूनी विवादों के लिये क्षेत्राधिकार Delhi होगा। स्व आंकलन: हमारे पिटारे के अस्त्र -शस्त्र हमारे जो 5 समुदाय हैं, वे अपना परिचय स्वयं हैं (1) शर्मनिरपेक्षता का उपचार (2) देश का चौकीदार कहे- देश भक्तो, जागते रहो-संपादक युगदर्पण, (3) लेखक पत्रकार राष्ट्रीय मंच, (राष्ट्र व्यापी, राष्ट्र समर्पित)- संपादक युगदर्पण, (4) युग दर्पण मित्र मंडल, (5) Muslim Rashtriya Ekatmta Manch (MREM) आप किसी भी विषय पर लिखते, रूचि रखते हों, युग दर्पण का हर विषय पर विशेष ब्लाग है राष्ट्र दर्पण, समाज दर्पण, शिक्षा दर्पण, विश्व दर्पण, अंतरिक्ष दर्पण, युवा दर्पण,... महिला घर परिवार, पर्यावरण, पर्यटन धरोहर, ज्ञान विज्ञानं, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, कार्य क्षेत्र, प्रतिभा प्रबंधन, साहित्य, अभिरुचि, स्वस्थ मनोरंजन, समाचार हो या परिचर्चा, समूह में सभी समाविष्ट हैं ! इतना ही नहीं आर्कुट व ट्विटर के अतिरिक्त, हमारे 4 चेनल भी हैं उनमें भी सभी विषय समाविष्ट हैं ! सभी विषयों पर सारगर्भित, सोम्य, सुघड़ व सुस्पष्ट जानकारी सुरुचिपूर्ण ढंगसे सुलभ करते हुए, समाज की चेतना, उर्जा, शक्तिओं व क्षमताओं का विकास करते हुए, राष्ट्र भक्ति व राष्ट्र शक्ति का निर्माण तभी होगा, जब भांड मीडिया का सार्थक विकल्प "युग दर्पण समूह" सशक्त होगा ! उपरोक्त को मानने वाला राष्ट्रभक्त ही इस मंच से जुड़ सकता है.: :

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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

ज्ञान विज्ञान की जन्मभूमि व तेज भारत में था

ज्ञान विज्ञान की जन्मभूमि व तेज भारत में था

 भा रत और भारत के लोगों के बारे में एक धारणा विश्व में बनाई गई कि भारत जादू-टोना और अंधविश्वासों का देश है। अज्ञानियों का राष्ट्र है। भारत के निवासियों की कोई वैज्ञानिक दृष्टि नहीं रही, न ही विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान है। 
भारत के संदर्भ में यह प्रचार (BrainWash) विचार रिवर्तन लंबे समय से आज तक चला आ रहा है। रिणाम यह हुआ कि अधिकतर भारतवासियों के अंतर्मन में यह बात अच्छे से बैठ गई कि विज्ञान यूरोप की देन है। विज्ञान का सूर्य पश्चिम में ही उगा था, उसी के प्रकाश से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है। 
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज हम हर बात में पश्चिम के पिछलग्गू हो गए हैं क्योंकि हम पश्चिम की सोच को वैज्ञानिक सम्मत मानते हैं, भारत की नहीं। पश्चिम ने जो सोचा है, अपनाया है वह मानव जाति के लिए उचित ही होगा। इसलिए हमें भी उसका अनुकरण करना चाहिए। 
भारत में योग पश्चिम से योगा होकर आया, तो जमकर अपनाया गया। आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को हटाकर एलोपैथी के व्यवसाय को अपनाया लोगों की आंखें तब खुली, जब आयुर्वेद पश्चिम से हर्बल का लेवल लगाकर आया। भारत में विज्ञान को लेकर जो वातावरण निर्मित हुआ उसके लिए हमारे देश के कर्णधार व नकी नीतियाँ ही जिम्मेदार हैं। जिन्होंने भी शोध और विमर्श के बाद भी, भारतीय शिक्षा व्यवस्था में, भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा को शामिल नहीं किया। भारत के छात्रों का क्या दोष, जब उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाएगा; तो उन्हें कहां से मालूम चलेगा कि भारत में विज्ञान का स्तर कितना उन्नत था। 
    विज्ञान और तकनीकी मात्र पश्चिम की देन है या भारत में भी इसकी कोई परंपरा थी? भारत में किन-किन क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास हुआ था? विज्ञान और तकनीकी के अंतिम उद्देश्य को लेकर क्या भारत में कोई विज्ञानदृष्टि थी? और यदि थी तो आज की विज्ञानदृष्टि से उसकी विशेषता क्या थी? आज विश्व के सामने विज्ञान एवं तकनीक के विकास के साथ जो समस्याएं खड़ी हैं; उनका समाधान क्या भारतीय विज्ञान दृष्टि में है? ऊपर के पैरे को पढ़कर निश्चित तौर पर हर किसी के मन में यही प्रश्न हिलोरे मारेंगे तो इनके उत्तर के लिए 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' पुस्तक पढऩी चाहिए। 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुरेश सोनी की इस पुस्तक में भी प्रश्न के उत्तर   निहित हैं। पुस्तक में कुल इक्कीस अध्याय हैं। धातु विज्ञान, विमान विद्या, गणित, काल गणना, खगोल विज्ञान, रसायन शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणि शास्त्र, कृषि विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, ध्वनि और वाणी विज्ञान, लिपि विज्ञान सहित विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भारत का क्या योगदान रहा; इसकी विस्तृत चर्चा, प्रमाण सहित पुस्तक में की गई है। यही नहीं, यह भी स्पष्ट किया गया है कि विज्ञान को लेकर पश्चिम और भारतीय धारणा में कितना अंतर है। जहां पश्चिम की धारणा उपभोग की है, जिसके नतीजे आगे चलकर विध्वंसक के रूप में सामने आते हैं। वहीं भारतीय धारणा लोक कल्याण की है। 
सुरेश सोनी मनोगत में लिखते हैं कि आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय की 'हिन्दू केमेस्ट्री', ब्रजेन्द्रनाथ सील की 'दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ एन्शीयन्ट हिन्दूज', राव साहब वझे की 'हिन्दी शिल्प मात्र' और धर्मपालजी की 'इण्डियन सायन्स एण्ड टेकनोलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी' में भारत में विज्ञान व तकनीकी परंपराओं को प्रमाणों के साथ उद्घाटित किया गया है। वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान और वनस्पति विज्ञान, भौतिकी, धातुकर्म, मशीनों, रसायन शास्त्र आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया। बेंगलूरु के एमपी राव ने विमानशास्त्र व वाराणसी के पीजी डोंगरे ने अंशबोधिनी पर विशेष रूप से प्रयोग किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी के लेखों, व्याख्यानों में प्राचीन भारतीय विज्ञान परंपरा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया है।
    भारत में विज्ञान की क्या दशा और दिशा थी, उसको समझने के लिए आज भी वे ग्रंथ उपलब्ध हैं, जिनकी रचना के लिए वैज्ञानिक ऋषियों ने अपना जीवन खपया। वर्तमान में आवश्यकता है कि उनका अध्ययन हो, विश्लेषण हो और प्रयोग किए जाएं। जबकि कई विद्याएं जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गईं, क्योंकि हमारे यहां मान्यता रही कि अनधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए। विज्ञान के संबंध में अनेक ग्रंथ थे, जिनमें से कई आज लुप्त हो गए हैं। जबकि आज भी लाखों पांडुलिपियां बिखरी पड़ी हैं। भृगु, वशिष्ठ, भारद्वाज, आत्रि, गर्ग, शौनक, शुक्र, नारद, चाक्रायण, धुंडीनाथ, नंदीश, काश्यप, अगस्त्य, परशुराम, द्रोण, दीर्घतमस, कणाद, चरक, धनंवतरी, सुश्रुत पाणिनि और पतंजलि आदि ऐसे नाम हैं; जिन्होंने विमान विद्या, नक्षत्र विज्ञान, रसायन विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र रचना, जहाज निर्माण और जीवन के सभी क्षेत्रों में काम किया। अगस्त्य ऋषि की संहिता के उपलब्ध कुछ पन्नों को अध्ययन कर नागपुर के संस्कृत के विद्वान डॉ. एससी सहस्त्रबुद्धे को मालूम हुआ कि उन पन्नों पर इलेक्ट्रिक सेल बनाने की विधि थी। महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र में अनेक यंत्रों का वर्णन है। नासा में काम कर रहे वैज्ञानिक ने सन् १९७३ में इस शास्त्र को भारत से मंगाया था। इतना ही नहीं, राजा भोज के समरांगण सूत्रधार का 31वें अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान, यांत्रिक दरबान और सिपाही (रोबोट की तरह)। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में चिकित्सा की उन्नत पद्धितियों का विस्तार से वर्णन है। यहां तक कि सुश्रुत ने तो आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन किया है। सृष्टि का रहस्य जानने के लिए आज जो महाप्रयोग चल रहा है, उसकी नींव भी भारतीय वैज्ञानिक ने रखी थी। सत्येन्द्रनाथ बोस के फोटोन कणों के व्यवहार पर गणितीय व्याख्या के आधार पर, ऐसे कणों को बोसोन नाम दिया गया है। 
    भारत में सदैव से विज्ञान की धारा बहती रही है। बीच में कुछ बाह्य आक्रमणों के कारण कुछ गड़बड़ अवश्य हुई लेकिन यह धारा अवरुद्ध नहीं हुई। 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' एक ऐसी पुस्तक है, जो भारत के युवाओं को अवश्य पढऩी चाहिए।

पुस्तक : भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा
मूल्य : ६० रुपए
लेखक : सुरेश सोनी
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन
१७, दीनदयाल परिसर, ई/२ महावीर नगर,
भोपाल-४६२०१६, दूरभाष - (०७५५) २४६६८६५
कभी ज्ञान विज्ञान से विश्वगुरु भारत की, स्वर्ण युग की उस शक्ति को
पहचान देगा; ज्ञान -विज्ञान दर्पण | आओ, मिलकर इसे बनायें; - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

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