अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन
नदि तिलक। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुमं व उप-राज्यपाल और कबीना सहयोगियों, से अंतर्राज्यीय परि की इस मुख्य बैठक के उद्घाटन सम्बोधन में स्वागत करते हुए प्र मं मोदी ने उनसे कहा- ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब केंद्र और राज्यों का नेतृत्व एक साथ एक स्थान पर उपस्थित हो। मोदी ने इसे आम जनता के हितों पर बात करने के लिए, उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए, एक साथ मिलकर ठोस निर्णय लेने के लिए सहकारी संघवाद का यह मंच, श्रेष्ठ उदाहरण तथा संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाने वाला भी बताया है।
मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि-
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं।राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है।
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है।
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है।
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
https://www.youtube.com/watch?v=kBzVDhcnrvA&index=57&list=PLaypC1Q7dot2BbeOFAWZW-beQPcYr1G8W आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक