Desh Bhakti ke Geet Vedio

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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है। किन्तु प्रकृति के संसाधनों व उत्कृष्ट मानवीयशक्ति से युक्त इस राष्ट्रको काल का ग्रहण लग चुका है। जिस दिन यह ग्रहणमुक्त हो जायेगा, पुनः विश्वगुरु होगा। राष्ट्रोत्थानका यह मन्त्र पूर्ण हो। आइये, युगकी इस चुनोतीको भारतमाँ की संतान के नाते स्वीकार कर हम सभी इसमें अपना योगदान दें। निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!

स्व आंकलन:

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गुरुवार, 3 जून 2010

बंगाल का लालगढ़ ध्वस्त

तिलक राज रेलन  -पश्चिम बंगाल में गत् दिनों कोलकाता  महानगर  व  स्थानीय निकायों के चुनावों के परिणाम घोषित होने पर जैसी कि अपेक्षा की जा रही थी, राज्‍य के अधिकांश नगर निगमों पर ममता बैनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने अपना अधिकार  जमा लिया है। कोलकाता के 141 वार्ड वाले नगर निगम में त्रि. मू. कांग्रेस को 95 में विजय मिली । तथा 16 जिलों के 81 स्थानीय निकायों में 24 त्रि. मू. काग्रेस की,33 त्रिशंकु व  7 काग्रेस को मिली; शेष 18 ही बचीं वामपंथियों के पास । जिलानुसार वामपंथियों के गढ़ उत्तरी 24 परगना की 16 में से 12 तथा हुगली की 16 में से 11 तथा बिधान नगर 25 में से 16 त्रि.मू.का. ने छीन ली हैं । और राज्‍य में अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति पर चलने का दंभ भरने वाली कांग्रेस तो कई जगहों पर स्पर्धा  से भी बाहर दिखाई देती है । परस्पर टकराव से केंद्र सरकार में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सहयोगी पार्टी होने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अपने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। जबकि कांग्रेस पाटी ने भी राज्‍य के निकायों की अधिकांश सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। इस प्रकार पश्चिम बंगाल में अधिकांशत: त्रिकोणीय संघर्ष  की स्थिति बन गई थी जिसमें अन्तत: तृणमूल कांग्रेस ने ही सफलता पाई।इन परिणामों के भावी संकेत यही हैं कि बंगाल के लालगढ़ ध्वस्त होने के साथ ही देश की राजनीति पर भी दूरगामी प्रभाव होंगे ।
पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम आ जाने के बाद अब राजनैतिक क्षेत्रों में कई प्रकार के गणित लगने लगे हैं। लगता है कि गत् 3 दशकों से राज्‍य विधानसभा पर निंतर अपना लाल परचम लहराने वाला वामपंथी दल 2011 के निर्धारित विधानसभा चुनावों के बाद, क्या अब पश्चिम बंगाल के राजनैतिक क्षितिज से अपनी बिदाई लेने वाला है? सोनिया व राहुल की  कांग्रेस पार्टी के ‘एकला चलो’ की नीति भी क्या पश्चिम बंगाल में असफल है? दिल्ली दरबार की राजनीति में ममता बैनर्जी को अपने पीछे रखकर संप्रग सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी क्या पश्चिम बंगाल में अपना  राजनैतिक अस्तित्व बचाने हेतु ही वहां ममता बैनर्जी की पिछलग्गू बनी रह सकेगी? पश्चिम बंगाल की राजनीति में आने वाला समय क्या अब ममता बैनर्जी का होगा? एक बार फिर राज्‍य में इसी प्रकार का त्रिकोणीय संघर्ष होगा या कांग्रेस पार्टी अपनी ही गोद में पाली-पोसी नेत्री ममता बैनर्जी द्वारा गठित तृणमूल कांग्रेस के पीछे चलकर तथा उनकी शर्तों,उनकी दया व उन्हीं के द्वारा तय की गई सीटों को लेकर अपने अस्तित्व को पश्चिम बंगाल में बचाए रखने के लिए बाध्य होगी?

एक यक्ष प्रश्न  यह भी कि आगामी 1 वर्ष में वामपंथी अपने इस ढहते हुए किले को बचाने के लिए अब क्या अंतिम प्रयास करेंगे? अपनी इन चेष्टाओं  में वे कितने सफल  हो सकेंगे। एक और यक्ष प्रश्न पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम आ जाने के बाद यह भी खड़ा हो रहा है कि गत् 3 दशकों तक वामपंथी विचारधारा व कार्य के बल पर जमे थे  या जनता को वामपंथ का विकल्प कांगेस में नहीं मिल पा  रहा था जो वह अब ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में देख रही है।
स्थानीय निकायों के चुनावों में हुए पार्टी प्रदर्शन को वाम नेता अपने लिए ख़तरे की घंटी अवश्य  स्वीकार कर रहे हैं। परंतु साथ-साथ झेंप मिटाने हेतु उनका यह भी कहना है कि पार्टी ने कई चुनाव क्षेत्रों में 2009 में हुए संसदीय चुनावों से भी बेहतर प्रदर्शन किया है।कहने को तो वाम नेता कितना ही कहें कि राज्‍य की जनता के लिए वे इतना कुछ नहीं कर पाए जितना कि जनता उनसे अपेक्षा रखती थी। वे 2011 के विधानसभा चुनाव से पूर्व अवश्य इस बात की कोशिश करेंगे कि वे मात्र इस 1 वर्ष में यह देखें कि किन कारणों के चलते जनता उनसे दूर होती जा रही है तथा उन्हें पुन: अपने विश्वास में कैसे लिया जाए? यह भी कि वामपंथ की स्थिति सुधरनी शुरु हो चुकी है।
जहाँ तक प्रश्न है  कांग्रेस व तृणमूल के बीच संबंधों  का तथा इन  के बीच पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी के अपने अकेले अस्तित्व का, तो इस विषय पर कांग्रेस पार्टी अवश्य दुविधा में पड़ती दिखाई दे रही है। गत् कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश व बिहार तथा अब पश्चिम बंगाल सहित कई राज्‍यों में अपने अकेले दमखम पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम करती रही है। उत्तर प्रदेश में इस रणनीति के कुछ  सकारात्मक परिणाम भी मिले तथा बिहार में अपेक्षाकृत कम। परंतु पश्चिम बंगाल के इन नवीनतम स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों ने तो कांग्रेस की ‘एकला चलो’ की रणनीति हवा ही निकाल दी है।
एक तो  क्षेत्रीय व स्थानीय समस्याओं को तथा क्षेत्र की जनता की नब्ज  को भी उसी राज्‍य के प्रतिनिधि नेतागण कहीं अधिक भली प्रकार समझते हैं। इस समय लगभग पूरे देश का अधिकांश मतदाता अपने राज्‍य से जुड़ी समस्याओं, उसके विकास तथा उत्थान की बातों को सुनने में अधिक रूचि लेता दिखाई दे रहा है। अर्थात् क्षेत्रीय समस्याएं राष्ट्रीय सोच व समस्याओं पर हावी होती जा रही हैं। इसका मुख्य  कारण है आरंभ से ही सत्ता में रहकर कांग्रेस अपनी कपट नीति व कलंकित चरित्र के हाथों जनता का विश्वास खो चुकी थी । स्पष्टत: ऐसे में क्षेत्रीय प्रश्नों के कारण क्षेत्रवाद  से सम्मोहित जनता फंसी संकीर्ण विघटनकारी राजनीति के क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच। क्या कांग्रेस तो क्या भारतीय जनता पार्टी इन सभी पर क्षेत्रीयता के बादल मंडराते दिखाई दे  रहे हैं।
 प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा जिला होगा, जहां वामपंथ के कद्दावर नेताओं ने अपनी हार के सितमगरों से समकक्ष होने के लिए कोई ठोस प्रबन्ध किए होंगे। सच कहें तो इनकी दुर्बल मन:स्थिति ही हार का प्रमुख कारण है। यह तथ्य किससे छिपा है कि वाममोर्चा गठबंधन के पास लोकसभा के ठीक पहले तक लगभग 50% जिलों का समर्थन था। मान भी लिया जाए कि जिले  में घूमघूमकर ममता बनर्जी ने अपने पक्ष में लहर पैदा की, तो इससे समतुल्य  होने के लिए वामपंथी नेताओं ने राजनैतिक प्रबंध क्यों नहीं किए?
नंदीग्राम और सिंगुर जैसे मसले लोकसभा चुनाव के पहले तक वामपंथियों के पक्ष में माने जा रहे थे। व्यावसायिक सोच  के लोग ममता बनर्जी को कभी भी गंभीरता से नहीं लेते थे। 2009 के प्रारंभ में कोलकाता के धर्मतल्ला में 26 दिनों की भूख हड़ताल से लेकर सिंगुर में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तक लगातार चले अनशन तक ममता बनर्जी का कथन कभी भी शहरी मतदाता के गले नहीं उतरा। लोग ममता को हड़तालवादी, विनाशकारी और न जाने क्या-क्या कहने लगे थे। टाटा का नैनो प्रकल्प बंगाल से गुजरात चला गया, तब भी ममता पर ही तर्जनी उठी थी। वामपंथियों ने इस जनभावना को अपने पक्ष में रखने का कोई प्रबन्ध नहीं किया। लोकसभा चुनाव के पहले तक पूरा मीडिया ममता के विरुद्ध  था। लोग ममता को विकास का बनाम मानते थे। किन्तु, अकेली ममता बनर्जी ने वामपंथियों के लालगढ़ को भेदने में एक-एक पल का भरपूर उपयोग  किया।
ममता बैनर्जी ने आरंभ में सदा ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य व नेत्री के रूप में वामपंथियों के समक्ष कांग्रेस के पक्ष में संघर्ष किया है तथा राज्‍य में कांग्रेस को जिंदा रखे रहने में अपना पूरा योगदान दिया। परंतु राजीव गांधी के समय में जब उन्हें यह आभास होने लगा कि राष्ट्रीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी अब वामपंथियों की ओर झुकने लगी है तथा भाजपा को रोकने के लिए वामपंथियों से हाथ मिलाने की तैयारी कर रही है। उसी समय (राजीव गांधी की हत्या के पश्चात) ममता बेनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया और 1997 में अपनी अलग पार्टी गठित कर ली।
ममता का यह मानना है चूंकि कांग्रेस व वामपंथी दो भिन्न-भिन्न  विचारधाराएं हैं अत: यह दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते।वामपंथियों की पराजय  का एक और कारण यह भी रहा है कि वामपंथी प्रगट में गरीबों, किसानों, श्रमिकों, कर्मचारियों,कामगारों व दिहाड़ीदारों के पक्ष में बोलते नजर आते हैं। किन्तु व्यवहार में तिजोरी भरने के लोभ में वह पूंजीवाद व उद्योगपतियों के समर्थक नजर आने लगते है। ऐसे मे सिंगूर जैसी घटना होने पर किसानों व मजदूरों के पक्ष में जहां वामपंथी खड़े नजर आते थे वहां ममता की टी एम सी खड़ी दिखाई दी। तो दूसरी ओर वामपंथी सरकार के जनविरोधी रूप में सशस्त्र बंगाल पुलिस।ऐसे में संघर्ष के व्यावहारिक रूप में बंगाली जनता ने वामपंथी दलों के बजाए ममता बैनर्जी को अपने पक्ष में संघर्ष करते पाया।
यही नहीं, इस सवाल का जवाब तो राज्य में निवेश करने वाले बड़े कारोबारी में मांग रहे हैं कि सोमनाथ चटर्जी का उदारवादी चेहरा दिखाकर एक दशक पहले औद्योगिक विकास निगम के माध्यम से प्रतिदिन जो सैंकड़ों-हजारों करोड़ के निवेश का झांसा दिया गया था, उसमें कितना निवेश कारगर रूप में लगा और कितनों को रोजगार मिला? गरीब किसानों की जमीन आज बंजर क्यों पड़ी है? अरबों रूपए खपाकर कारोबारी क्यों रो रहे हैं?
वामपंथियों के पास अब समय नहीं रह गया है।अब 35 वर्ष की सत्ता के बाद एक बार मोर्चाके शासन पर विराम लगना अवश्यंभावी प्रतीत हो रहा है।राज्‍य के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम में सिंगूर व नंदीग्राम जैसी घटनाओं की छाया भी स्पष्ट  देखी जा सकती है। कुल मिलाकर राज्‍य की जनता ने स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों के माध्यम से राज्‍य की भविष्य की राजनीति के मस्तक पर जो रचना लिखी है उससे इन परिणामों को पश्चिम बंगाल राज्‍य का निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।
किन्तु कुछ लोग यह शंका जाता रहे हैं  कि ममता बनर्जी के हुकूमत में आ जाने से भी प्रदेश में चल रहा अमावसी दौर नया उजाला नहीं ला पाएगा। ममता की अपनी लड़ाकू छवि हो सकती है, पर उनकी अकड़, उनकी जिद, उनका बचपना, उनका बिदकना, उनकी कार्यशैली प्राइमरी में पढऩे वाले बच्चे की चिंतनधारा से अलग नहीं है। उनके साथ जो चेहरे हैं, और उन चेहरों के पीछे जो सच छिपा है, उन चेहरों से जो भाषा निकलती है-वह कहीं से गणतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करने वाले के लिए सम्मानजनक नहीं है। केंद्रीय मंत्री बन चुके तृणमूल के कुछ बड़े नेताओं की भाषा से तो वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखने वाला छोटा कैडर भी सभ्य भाषा बोलता है। वामपंथियों की साथ चलने वाले मोर्चे की सहोदर पार्टियों के नेताओं का विरोध सहने का धैर्य है, लेकिन यह सब गुण ममता में कहीं नहीं हैं। जिद और अकड़ पर सूबे में हुकूमत चलाने की सोच उन्हें कभी भी पटखनी दे सकती है।
हो सकता है यह वामपंथी निकटता के पत्रकारों कि सोच या अनुभव हों? यदि यह सही है तो ममता को शीघ्र ही इस पर नियंत्रण पाना होगा! तभी वामपंथी किला पूरी तरह स्थाई रूप से ध्वन्स्त होगा! यहाँ अंत नहीं गुजरात व बिहार कि भांति राज्य को सकारात्मक विकल्प चाहिए! शुभ कामनाओं सहित
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

सोमवार, 24 मई 2010

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

म्पूटर आज के समय का सर्वाधिक विश्वसनीय व् महत्वपूर्ण उपकरण है जिसपर हम पूर्णतया निर्भर करते हैं! सर्च इंजन से कुछ भी खोज सकते हैं मात्र एक संकेत पर ! मदारी ने कुछ चमत्कार दिखलाय, (पहले के मदारी तो खेल करतब से मनोरंजन कर दो समय की रोटी की भीख मानता था) हमारे देश के नेताओं ने देश का भविष्य ही मदारी के हाथों सौंप दिया! कभी वायरस, कभी हेकिंग, कभी गुप्त जानकारी से बेंक से खाता खाली! कुछ दिन पूर्व नोएडा पुलिस का नेटवर्क जो विदेशी संचित था बंद हो गया था! संभवत: यह पुराभ्यास था इस देश को ठप्प करने का, अथवा इस धमकी से कुछ मनवाने का प्रयास! अब हम आगे बड़ते हैं -हमने खोजना चाह भारत योग संस्थान, हमें उसके स्थान पर 3 प्रकार के परिणाम विदेशों के योग क्लब , कई प्रकार के संसथान भारत पेट्रोलियम से लेकर भारत के वेश्यालयों तक की जानकारी मिलेगी! अब आप भारत योग संसथान पंजीकृत कर पुन: खोजना चाहें निश्चित नहीं है खोज पाना ! कई बार हम अपनी ही साईट खोलने हेतु पासवर्ड डालते है- आपका पासवर्ड स्वीकार नहीं होता आपको कहा जाता है आप पासवर्ड भूल गए हैं आपके दुसरे पते पर नया अवसर आपको दिया जाता है यदि अन्य पता नहीं है तो ?.. आपको दास बनाने वाले मुक्ति के सभी मार्ग बंद कर देते हैं ! एक है कम्पूटर का ज्ञान कोष विकिपीडिया एक बार उसका अनुभव लिया मेटाविकी कई विषयों पर कई भाषाओँ पर अपनी भाषा देखने की उत्सुकता जगी तो पाया विश्व के कई ऐसे देश जिनका नाम भी नहीं जाना जाता उनकी भाषा, नेपाली तक में मेटा विकी है किन्तु हिंदी में नहीं! विश्व की महाशक्ति बनने के प्रयास में हर छोटे बड़े देश की धमकी सुनते सुनते हम मेटा विकी हिंदी में नहीं कर पाए !

चलिए राष्ट्र निर्माण का प्रयास करते हैं ! अपनी बात सर्व सहमती की होनी चाहिए, इस विषय पर अन्य विद्वानों के विचार जानने के लिए विषय अंकित कर बटन दबाया कई लेखकों की सूचि मिली, विषय विवरण पड़कर धीरज बंधा की हमारे विचार से मेल खाता है ! ज्ञान बंटोरने लगे तो सभी अमेरिका के राष्ट्र निर्माण की बात करते मिले! अँगरेज़ कहते थे भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था अब अमेरिका व् मैकाले की अनुचित संतानों को पुष्टि मिल गई ! पराश्रित विकास क्रम में कभी भी नीचे से सीडी खिंच सकती है किन्तु स्वावलंबी धीरे चले तो भी विजय निश्चित, निर्बाध है !
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

सोमवार, 17 मई 2010

युगदर्पण यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

मंगलवार, 11 मई 2010

लाल दुर्ग की दीवारों में दरारें

अविश्वसनीय किन्तु शीतलतादायक गरमागरम सत्य                -अरविन्द कुमार सेन

समय: रात के 8 बजे। स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का माही-मांडवी छात्रावास का भोजनालय। छात्र खाना खा रहे हैं। आइसा, एसएफआई, डीएसयू, पीएसयू और एआईडीएसओ आदि वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य छात्र भोजनालय में पहुंचते हैं। हाथों में बैनर और तख्तियां लिए ये छात्र दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमलें को सही ठहराते हैं और 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' के खिलाफ बोलते हैं। डीएसओ की प्रतिनिधी छात्रा ने मुश्किल से एक मिनट बोला होगा कि अचानक भोजनालय में उपस्थित सारे छात्र चिल्लाने लगते हैं। कोई चम्मच से प्लेट बजा रहा है तो कोई जग से टेबल बजा रहा है। माहौल तनावपूर्ण हो जाता है और वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य बाहर की ओर दौड़ते हैं।
    माही-मांडवी के छात्र भी उनके पीछे-पीछे ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर आ जाते हैं। कुछ छात्र छात्रावास के सूचना पट्ट से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़कर उन्हें गेट के पास जला देते हैं।
     छात्रावास के गेट के पास धीरे-धीरे भीड़ जमा होने लगती है। इस भीड़ में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं जो किसी भी छात्र संगठन से नहीं जुड़े हैं। बिना किसी पूर्व योजना के एकत्रित हुए ये छात्र माओवादी हमले की आलोचना करते हैं। अचानक अफवाह फैलती है कि छात्रावास के एक लड़के का भाई भी एस हमले में मारा गया है। भावावेश में सारे छात्र जोर-जोर से नारे लगाते हैं और थोड़ी देर बाद सामने स्थित कोयना छात्रावास की ओर चल देते हैं। आन्दोलनों से दूर रहने वाले विज्ञान संकाय के छात्र भी आज इस भीड़ में शामिल हैं।
     ‘शहीदों हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘चीन के दलालों शर्म करो’ के नारों की गूंज के बीच कोयना छात्रावास के सूचना पट्ट से भी वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं। इतने में छात्रावास से कुछ लड़कियां माचिस लेकर बाहर आती हैं और पोस्टरों को जला देती हैं। इसके बाद छात्र-छात्राओं की यह भीड़ बढती जाती है और एक-एक करके लोहित, चन्द्रभागा, गंगा, यमुना, ताप्ती, साबरमती समेत सभी छात्रावासों के सूचना पट्टों से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं।
     इसके बाद सारी भीड़ 24 गुणा 7 ढाबे पर एकत्रित होती है। छात्र-छात्राएं एक-एक करके बोलना शुरू करते हैं। चूंकि भीड़ में किसी संगठन विशेष का कोई छात्र नेता नहीं है इस कारण वक्ताओं के जो मन में आ रहा है, वही बोलते जा रहे हैं। एक लड़की कहती है- बस अब बहुत हो गया, अब और तानाशाही नहीं सहेंगे। क्या कर लेंगे आईसा और एसएफआई वाले जाकर विभाग में सर से शिकायत कर देंगे, ग्रेड कम करवा देंगे, एमफिल में एडमिशन नहीं होगा। कोई बात नहीं, डीयू में चले जाएंगे लेकिन यहां इन लोगो की दादागिरी नहीं सहेंगे।
    एक और छात्र गौरव कहता है कि जेएनयू की इस दिखावे की जिंदगी से जी भर गया है। अगर कम्यूनिस्टों के खिलाफ कुछ भी बोलो तो दक्षिणपंथी समझ लिया जाता है और परीक्षा में ग्रेड़ कम कर दिया जाता है। देशभर के मुद्दों के लिए लड़ने का दंभ भरने वाले ये लोग जेएनयू में क्या कर रहे हैं इस सामाजिक संवेदनशीलता के ढोंग से जी भर गया है। गौरव अपनी बुआ के लड़के को याद करते हैं जो हाल ही में हुए माओवादी हमले में मारा गया। गौरव की आंखे नम हो जाती हैं और भर्राई आंखों से यह कहकर अपनी बात खत्म करते है कि बेशक जेएनयू छोड़ना पड़े लेकिन अब इन लोंगो का साथ नहीं देंगे। यह सभा लगभग 11 बजे खत्म हो जाती है।
     समय 11:30 बजे और स्थान जेएनयू का थिंक टैंक सेंटर गंगा ढाबा। गंगा ढाबा आज ऐसी घटना का गवाह बना जो पिछले चार दशकों में कभी नहीं हुई। ऊंची आवाज में होने वाली बहसें और नोक-झोंक आज नहीं हो रही हैं। गंगा ढाबे की पत्थर की कुर्सियां, जहां महफिले जमती थी, आज खामोशी के आवरण में लिपटी हुई हैं। इस सन्नाटे में कुछ छात्र धीमे-धीमे बात कर रहे हैं। आज तो क्रान्ति हो गई, गजब हो गया, माही-मांडवी वालों ने कमाल कर दिया.. यही सब आवाजें रह-रहकर गंगा ढावे की फिजां में तैर रही हैं।
     क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र की छात्रा अनुष्का कहती हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों के खिलाफ छात्र लंबे समय से उबल रहे थे। नक्सली हमले ने छात्रों को अपना आक्रोश जाहिर करने का अवसर दे दिया। छात्र प्रोफेसरों से डरते थे लेकिन आज यह सीमा भी टूट गई और सब छात्र सड़क पर आ गए। अनुष्का के बगल में खड़े राजीव आगे की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों ने विरोध करने के लिए गलत समय का चुनाव किया। 77 जवानों की मौत के बाद माओवादी लोंगो की सहानुभूति खो चुके हैं। एक तो ये संगठन पहले से ही खराब दौर से गुजर रहे हैं और फिर इनके प्रदर्शन से एबीवीपी और एनएसयूआई को मुंह मांगी मुराद मिल गई।
     पिछले 10 सालों से परिसर की राजनीति देख रहे शोध छात्र विवेक कहते हैं कि आज का प्रदर्शन जेएनयू की छात्र राजनीति में नया अध्याय है। पहले एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता प्रदर्शन तो दूर परिसर में पोस्टर तक नहीं चिपका पाते थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज जो हुआ, उसकी तो सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
     वामपंथी खेमा इस घटना के बाद से स्तब्ध है। जिस दुर्ग को सबसे अभेद्य समझा जाता था, आज उसकी दीवारों पर चिपके पोस्टरों पर लिखा है कि कम्यूनिस्ट कोई भी परचा न लगाए। डीएसयू के एक कार्यकर्ता ने दबी जुबान में कहा कि हमने गलत समय पर नक्सलवाद के समर्थन में प्रदर्शन करके एबीवीपी और एनएसयूआई को हावी होने का मौका दे दिया।
     दक्षिण एशिया अध्ययन केन्द्र के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस घटना कि पृष्ठभूमि पिछले पांच साल से तैयार हो रही थी। पहले जेएनयू में बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों के प्रोफेसर और छात्र हावी थे। उस समय हिन्दी पट्टी और खासकर बीएचयू और डीयू के छात्रों का प्रवेश न के बराबर होता था। अब न केवल प्रोफेसर बल्कि डीयू और बीएचयू के छात्र भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं, जो पहले से ही भगवा रंग में रंगे होते हैं।
     खास बात यह है कि एबीवीपी और एनएसयूआई जैसी धुर विरोधी पार्टियां एक साथ मिलकर वामपंथी छात्र संगठनों से लड़ रही हैं। अपने सबसे कठिनतम दौर से गुजर रही वामपंथी पार्टियों के लिए यह एक और बुरी खबर है। बंगाल और केरल के बाद तीसरे मजबूत गढ जेएनयू की दीवारों में भी दरारें आ गई हैं। जिस परिसर में इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह तक को नहीं बोलने दिया गया था, आज उसी जगह कम्यूनिस्ट पार्टियां को पोस्टर तक नहीं लगाने दिया जा रहा है।
     प्रकाश करात और सीताराम येचुरी की कर्मस्थली जेएनयू में आज भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे गूंज रहे हैं। यह देश में वामपंथ की चूलें हिलने का एक और संकेत है।
  यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

बुधवार, 5 मई 2010

Bharatiya Janata Party,BJP calls for a new Kashmir lead by youth

BJP Jammu & Kashmir Rajbagh, Srinagar, Kashmir
Press statement by Jenab Tarun Vijay, National Spokesperson, BJP.
04th May 2010. Srinagar)
    On my first visit to Srinagar after assuming the office of National Spokesperson, BJP, I have found the people, the common Kashmiris peace loving, wanting to have a prosperous and harmonious future, specially the youth of the valley. I bring good wishes and prayers for happy times for them on behalf of my Party President Shri Nitin Gadkari and the entire cadre.
     Its time for a New Kashmir led by the youth to rise leading into the era of peace, prosperity and progress. The wise, brilliant, futuristic path is at a stone’s throw away spreading its arms that ensure liberalism and happiness. We must lend an ear and guide them for the future. Their anger should be channelized into employment avenues. Our Party President Shri Nitin Gadkari has given a special message of goodwill for the youth of Kashmir wishing them happiness and a peaceful time ahead that must make every Indian proud.
I would also like to salute the Kashmiri Mothers who painstakingly tried and succeeded to a great extent keeping away their children from terrorism and destructive activities. Their heart and soul witnessed mayhem upsetting the real spirit of a composite culture of Kashmiriyat and they have stood firmly for saner and civilized values. Let’s walk together. I invite the youth and the women power to join BJP and create progressive entrepreneurship in the region of science, technology and protection of the environment that can become an example for the rest of India.
     A Number of incidents have been noticed where the local Muslims have courageously stood with their Kashmiri Hindu brethren and helped. A large number of them want Hindus come back and also support those who have stayed back. It’s a welcome sign that must get the national attention and accelerate the creation of a situation where all Hindus feel safe to return. One example, amongst many I heard is of Fateh Kadal, where a Shri Rama Shaiv Ashram was rebuilt by the active help from local Muslim friends. I wish such examples are highlighted by media also.
     Nothing can surpass the humanitarian values of the Kashmiri society, a beacon light for the Indianness. We trust the best of the solutions to all issues can be found through the path of Insaniyat, not through bullets.
Office secy.
   BJP J&K, Srinagar,04-05-2010
पाक के सभी नापाक इरादों को असफल कर इस देश ने यह दिखा दिया है, "यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें, राष्ट्र शक्ति जगाएं"- तिलक

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

कांग्रेसनीत संप्रग शासन में आम आदमी दाने-दाने को मोहताज : नितिन गडकरी

  
महंगाई के विरोध में ऐतिहासिक रैली

संसद से सड़क तक संघर्ष जारी रहेगा
गत 21 अप्रैल, 2010 को यूपीए सरकार की गलत नीतियों से बेलगाम हुई महंगाई के विरोध में भाजपा के आह्वान पर देश के कोने-कोने से आए लाखों लोगों ने संसद पर दस्तक दिया और कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार को चेतावनी दी कि ‘महंगाई रोक दो-वरना गद्दी छोड़ दो’।
     महंगाई से आम आदमी किस कदर परेशान हैं इसकी बानगी रामलीला मैदान में स्वत: ही दृष्यमान हो रही थी। वर्षों बाद लोगों का सैलाब इस कदर उमड़ा कि यह मैदान छोटा पड़ गया। जितने लोग रामलीला मैदान में थे उतने ही लोग दिल्ली की सड़कों पर। भारत की राजधानी महंगाई विरोधी नारों से दिन भर गूंजती रही। महंगाई के विरोध में रामलीला मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ। इसके पश्‍चात् लाखों प्रदर्शनकारियों ने एक हाथ में भाजपा का झंडा तो दूसरे हाथ में तख्ती लिए संसद की ओर मार्च किया। तख्तियों पर- ‘सोनिया-मनमोहन की जोड़ी, आम आदमी की कमर तोड़ी’, ‘सोनिया का देखो खेल, महंगी चीनी महंगा तेल’, ‘कांग्रेस का हाथ, जमाखोरों के साथ’, ‘जबसे कांग्रेस आई है, कमरतोड़ महंगाई है’, ‘घेरो संसद बांधो दाम, महंगाई पर कसो लगाम’, आदि महंगाई विरोधी नारे लिखे हुए थे।
     जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने संप्रग सरकार को गांव, गरीब और मजदूर विरोधी सरकार करार दिया। उन्होंने कहा कि ‘गरीबी हटाओ’ के नाम पर कांग्रेस सरकार गरीबों को हटाने पर तुली हुई है। इस सरकार के शासन में भ्रष्‍टाचार चरम पर है। दाल, चावल और चीनी का घोटाला हुआ। गोदामों में अनाज सड़ रहा है। आम आदमी दाने-दाने को मोहताज है। किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हो रहे हैं। इस सरकार ने गरीब आदमी के पेट पर लात मारी है, हमें इसके खिलाफ लड़ना है।
     उन्होंने कहा कि महंगाई को कम करने के लिए केन्द्र सरकार गंभीर नहीं है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम Double digit growth rate की तरफ जा रहे हैं। कमलनाथ कहते हैं कि गरीब लोग ज्यादा खाते हैं। चिदम्बरम ने कहा कि हमने कुत्तों के खाने वाली बिस्किट पर टैक्स माफ कर दिया है। प्रणब कहते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं। शरद पवार का कहना है कि चीनी, गेहूं, चावल की कीमतें अमेरिका और इंग्लैंड की तुलना में भारत में सस्ती है। सोनिया गांधी कहती हैं कि खाद्य पदार्थों की महंगाई के बारे में कांग्रेस सरकार को पत्र लिखेगी। श्री गडकरी ने कहा कि यूपीए सरकार ने दावा किया था कि 100 दिनों के अंदर महंगाई कम हो जाएगी। लेकिन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कांग्रेस शासन में महंगाई बढ़ती ही जा रही है। सरकार की नीयत में खोट है। देश में बढ़ रही महंगाई के लिए यूपीए की गलत आर्थिक नीति और कुशासन जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि हमने हाल में महंगाई को लेकर चार्जशीट जारी की और प्रधानमंत्रीजी से 14 सवाल पूछे लेकिन वो जवाब नहीं दे पाए। मैं विश्वास से कह सकता हूं कांग्रेस का कोई माई का लाल इन सवालों का जवाब नहीं दे सकता। यदि उनमें हिम्मत है तो वे हमसे मीडिया में खुली बहस करे।
     उन्होंने आंकडों का हवाला देकर संप्रग सरकार की पोल खोलते हुए कहा कि विश्व में चीनी 28 रूपए किलो है जबकि भारत में 38 रूपए किलो, ऐसा क्यों?48 लाख टन चीनी का निर्यात 12.50 रूपए से किया गया और उसे 22 रूपए की दर से आयात किया गया। अभी भी देश में 42 करोड़ लोगों से भी ज्यादा गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। मेरे पास 25 देषों की महंगाई के आंकड़े हैं। इन देशों में मुद्रास्फीति की दर दो प्रतिशत है जबकि भारत में यह 11 प्रतिशत है।
     श्री गडकरी ने उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि करोडों रूपए पुतले के लिए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन किसानों के हितों की रक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
     उन्होंने कहा कि देशवासियों को अब अटलजी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की याद आने लगी है। उन दिनों लोग मेहमानों का सत्कार करने में जुट जाते थे तो वहीं आज कांग्रेस शासन में लोग कहते हैं कि आया मेहमान कब जाए कि हम खाना खाएं।
     श्री गडकरी ने कहा कि महंगाई के विरूध्द संघर्ष में आज जितने लोग यहां आए हैं उससे 10 गुना लोग दिल्ली की सड़कों पर खड़े हैं। महंगाई के प्रति जनता में बेहद आक्रोश व्याप्त है, आज की रैली ने यह सिध्द कर दिया है।


     भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी को बधाई देते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में दिल्ली मे आयोजित यह पहली रैली असाधारण है। इसने पूर्व की सभी रैलियों को मात दे दी है।
     उन्होंने कहा कि महंगाई को लेकर यह सरकार पूरी तरह विफल हुई है। महंगाई जिस प्रकार से बढ़ी है उससे आम आदमी तो त्रस्त हैं ही मध्यम श्रेणी के लोग भी परेशान हैं। गत 6 सालों से खाद्य पदार्थों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। 100 प्रतिशत, 200 प्रतिशत और 250 प्रतिशत तक बढ़ी।
उन्होंने कहा कि कांग्रस शासन में महंगाई बढ़ने के दो प्रमुख कारण हैं, पहला- कुप्रबंधन और दूसरा- घोटालों के रूप में भ्रष्टाचार। वहीं भाजपा शासित राज्यों- मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, कर्नाटक प्रगति कर रहे हैं।
     उन्होंने कहा कि महंगाई के विरोध में इस संघर्ष में इतनी बड़ी संख्या में लोग आए हैं। यूपीए सरकार समझ ले कि यह संकट की चेतावनी है।
     लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि देश में बढ रही महंगाई को लेकर यूपीए सरकार ने तीन प्रमुख कारण गिनाए हैं। पहला, प्राकृतिक आपदा, दूसरा, किसानों को अधिक समर्थन मूल्य देना और तीसरा, आर्थिक मंदी। यह गलत है। वास्तव में सरकार की गलत नीतियों के कारण महंगाई बढ़ रही है।
     उन्होंने कहा कि संप्रग शासन में दाल, चीनी और चावल के आयात-निर्यात में घोटाला हुआ। इसी महाघोटालों के विरोध में यह संघर्ष हैं। आज देश की जनता बेखबर सरकार को चेताने आई हैं। जनता के इस संघर्ष में भाजपा आग्रणी भूमिका निभाएगी।
     उन्होंने रैली में उपस्थित विशाल जनसमूह से ‘महंगाई रोक दो-वरना गद्दी छोड़ दो’ का सामूहिक नारा उद्धोष कराया और कहा कि यह संघर्ष जो छिड़ा है आज केवल आगाज है। सरकार चेत जाए और जनता का दुख-दर्द दूर करे। यदि सरकार ने महंगाई खत्म नहीं की तो गद्दी छोड़वाकर रहेंगे।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्री अरुण जेटली ने कहा कि जब भाजपा ने महंगाई के विरोध में 21 अप्रैल को विशाल रैली करने की घोषणा की, तो उस वक्त कई लोगों ने आषंकाएं व्यक्त की थी, लेकिन आज सबको यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा संसद में भी जरूरी मुद्दों पर आवाज बुलंद करती है और सड़कों पर भी प्रबल संघर्श करती है।
      श्री जेटली ने यूपीए सरकार को हर मोर्चे पर विफल करार देते हुए कहा कि यह सरकार आतंकवाद से लड़ने में नाकामयाब रही। माओवाद से लड़ने में अक्षम साबित हुई और महंगाई को कम करने के मोर्चे पर तो सरकार पूरी तरह से विफल हो गई।
     उन्होंने कहा कि आर्थिक मंदी से बाहर निकलने के बाद कीमतें कम हो जाती हैं लेकिन हिन्दुस्तान में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ गई। देश में रिकार्ड पैदावार हुई। सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा है। किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहा है। बजट में डीजल और पेट्रोल की कीमतें बढ़ा दीं। वहीं चीनी पर एक्साइज डयूटी बढ़ा देना, यह सरकार की गलत नीतियां हैं। यदि ऐसे ही हालात रहे तो अगले 6 महीने में कीमतें और बढ़ेंगी।
      पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि महंगाई के विरूध्द यह महाकुंभ है। यह संघर्ष केवल रैली आयोजन तक नहीं, केन्द्र सरकार की गलत नीतियों के विरूद्ध संघर्ष जारी रहेगा।
     डॉ. जोशी ने कहा कि महंगाई कांग्रेस के चरित्र में है। इंदिरा गांधी के समय में भी महंगाई बेलगाम रही जबकि जनता पार्टी और भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के समय महंगाई नियंत्रित रही।
उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार आम आदमी के नाम पर सत्ता में आकर धनी लोगों के लिए काम करती है। यूपीए के मंत्रियों के पास महंगाई की तरफ ध्यान देने की फुर्सत नहीं है, उसके कृषि मंत्री व विदेश मंत्री क्रिकेट पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
      उन्होंने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि उसने जनता को आश्वासन देने के अलावा क्या दिया है। सट्टाबाजार व जमाखोरों के कारण महंगाई बढ़ रही है। गरीबों की जेब काटकर सट्टाबाजार बढ़ रहा है।
     उन्होंने कहा कि जनता में सरकार की गलत नीतियों के प्रति आक्रोश है। यह अंगड़ाई मात्र है। आगे बड़ी लड़ाई है। इसके साथ ही उन्होंने यूपीए सरकार को चेताते हुए कहा कि जो सरकार देश के आम आदमी को बुनियादी सुविधाओं न उपलब्ध करा सके उसे एक मिनट भी सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है।
     भाजपा के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज संसद पर देश के कोने-कोने से लाखों लोग दस्तक देने आए हैं और वे आवाज बुलंद कर रहे हैं कि या तो महंगाई कम करो या गद्दी छोड़ दो।
     श्री सिंह ने कहा कि जब-जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार आई, तब-तब महंगाई बेतहाशा बढ़ी जबकि एनडीए शासन के दौरान महंगाई बंधी रही। गत 6 वर्षों से महंगाई बेलगाम है। क्या कारण है कांग्रेस के हुकूमत में महंगाई बढ़ने लगती है। सच तो यह है कि कांग्रेस सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण महंगाई बढ़ रही है।
      उन्होंने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि यूपीए को सर्वाधिक चिंता आइपीएल की रहती है लेकिन वह देश की बुनियादी समस्याओं के बारे में चुप्पी साधे रहती है। गांव की गरीबी निरंतर बढ़ती जा रही है। गरीब और गरीब होते जा रहे हैं वहीं अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। 42 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह करने पर अभिशप्त हैं। लाखों टन गेहूं सरकार के गोदामों में सड़ रहा है। उचित कीमत पर न खाद्य मिल रहा है और न ही पानी, बिजली मिल पा रही है। लेकिन कांग्रेस सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगती। उन्होंने कहा कि किसानों की माली हालात सुधारे बिना समृध्द भारत का सपना साकार नहीं हो पाएगा। किसानों की क्रयक्षमता बढ़ानी होगी।
     उन्होंने कहा कि सारे हिन्दुस्तान में हाहाकार मचा है। महंगाई से लड़ने की कूव्वत सिर्फ भाजपा में है। दिल्ली में दी गई यह दस्तक गांव-गांव तक पहुंचनी चाहिए।
      इस रैली में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री वेंकैया नायडू, राष्ट्रीय महामंत्री श्री अनंत कुमार, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रीगण सर्वश्री शिवराज सिंह चौहान (मध्यप्रदेश), प्रो. प्रेमकुमार धूमल (हिमाचल प्रदेश), श्री सुशील कुमार मोदी, (उपमुख्यमंत्री, बिहार) ने भी जनसभा को संबोधित किया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ भी उपस्थित थे। सभा का संचालन राष्‍ट्रीय महासचिव श्री विजय गोयल ने किया।
        April 22nd, 2010 | Category: राजनीति | Print This Post Print This Post | Email This Post Email This Post | 286 views
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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

नानाजी देशमुख – व्यक्तित्व और कृतित्व – विनोद बंसल

 

प्रकाश  पुंज सा आदर्श जीवन, जीते जी समाज  की निष्काम सेवा और अंत में पार्थिव शरीर के अंग भी  समाज को अर्पित कर देने का अद्वितीय व्यक्तित्व !  यूं तो हमारा देश पुरातन काल से ही ॠषियों, मुनियों, मनीषियों, समाज सुधारकों व महापुरुषों का जनक रहा है जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर जगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। किंतु आधुनिक युग की बदलती हुई परिस्थितियों में ऐसे महापुरुष बिरले ही हैं। 11अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से ग्राम कडोली में जन्मे चंडिका दास अमृतराव देशमुख ने अपने बाल्यावस्था में शायद ही ऐसी कल्पना की होगी कि वह अपने जीवन काल में किये गये सेवा, संस्कार व शिक्षा के प्रसार के माध्यम से 50,000 से अधिक विद्यालयों की स्थापना, 500 से अधिक ग्रामों का विकास, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, दीनदयाल शोध संस्थान, राष्ट्र, धर्म, पांचजन्य व ‘दैनिक स्वदेश’ का संपादन/प्रबंधन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम पूरे विश्व में फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा पायेगा। भारत सरकार उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित कर राज्यसभा के लिए स्वतः मनोनीत करेगी यह तो सोचा ही कैसे जा सकता था।
अपने 94 वर्षों की लंबी निष्काम सेवा ने उनका असली नाम चंडिका दास अमृतराव देशमुख से नानाजी देशमुख रख दिया। निर्धनता के कारण सब्जी बेच किताबें जुटाकर पढ़ने वाले नानाजी देशमुख लोकमान्य तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हैडगेवार की राष्ट्र निष्ठा ने उन्हें संघ से जोड़ा। 1940 में उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया तथा आगरा से संघ प्रचारक के रूप में अपना समाज जीवन आरंभ किया। विषम आर्थिक परिस्थितियों व राजनैतिक विरोधों के बावजूद उन्होंने मात्र 3 वर्षों में गोरखपुर के आसपास 250 से अधिक संघ शाखाएं प्रारम्भ करवायीं। शिक्षा की दुर्दशा को देखते हुए 1950 में गोरखपुर में ही उन्होंने पहला सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय खुलवाया। संस्कारवान व राष्ट्रनिष्ठ नागरिक बनाने वाले ऐसे 50000 से अधिक विद्यालय आज देश के कोने- कोने में चल रहे हैं। ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’ व ‘दैनिक स्वदेश’ जैसे विख्यात प्रकाशन नानाजी के मार्गदर्शन की ही देन हैं।
1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद नानाजी को उत्तर प्रदेश का प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया जिन्होंने 1957 तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का अलख जगाया। उत्तर प्रदेश की 412 सदस्यों वाली विधानसभा में जनसंघ के 99 विधायक चुनवाकर काँग्रेस की चूलें हिला दीं थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के पश्चात् पंडित दीन दयाल उपाध्याय को जनसंघ का अखिल भारतीय महामंत्री तथा नानाजी को अखिल भारतीय संगठन मंत्री बनाया गया। जहां एक ओर श्री विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया तो वहीं दूसरी ओर श्री जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान पटना में अपने ऊपर लाठियां खाकर श्री जयप्रकाश नारायण को बचाया। आपातकाल में जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के उपरांत वे प्रथम सत्याग्रही बने और देश भर के कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करते रहे। 1977 में आपात काल समाप्ति पर देशभर की सरकारों में जनसंघ सहयोगी रहा तथा नानाजी को केंद्र में उद्योग मंत्री का प्रस्ताव भेजा जिसे नानाजी ने सविनय ठुकरा दिया। 60 वर्ष की आयु में राजनीति छोड़ उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद में ग्राम विकास में जुटकर वे महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के दर्शन को अमली जामा पहनाने वाले महामनीषी बने। प्रचार से दूर रहने वाले निष्काम कर्मयोगी द्वारा केवल गांवों की दशा सुधार का उन्हें अपने बलबूते पर खड़कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो कार्यक्रम प्रारंभ किये गये उन्होंने भारतीय जनमानस पर अमिट छाप छोड़ दी। 2005 में प्रारंभ किये गये चित्रकूट ग्रामोदय प्रकल्प ने चित्रकूट के आसपास 500 से अधिक ग्रामों को स्वाबलंबी बना दिया तथा देश को पहला ग्रामोदय विश्वविद्यालय प्रदान किया। वे ग्राम विकास के सच्चे पुरोधा थे। सफल ग्रामोत्थान के इन्ही प्रयोगों के लिए उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से विभूषित कर राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। दीनदयाल शोध संस्थान नानाजी की कल्पना का ही एक साकार रूप है।
लगभग एक शतक लंबी राष्ट्र को समर्पित आयु के अंतिम पड़ाव से पूर्व ही उन्होंने तय कर लिया था कि जब तक जीवित हैं तब तक स्वयं तथा मृत्यु के बाद उनकी देह राष्ट्र के काम आये। दिल्ली की दधीचि देहदान समिति को अपने देहदान संबंधी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नाना जी ने कहा था कि मैंने जीवन भर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में होने वाली दैनिक प्रार्थना में बोला है -’पतत्वेष कायो, नमस्ते-नमस्ते’ अर्थात् हे भारत माता मैं अपनी यह काया हंसते हंसते तेरे ऊपर अर्पण कर दूं। अतः मृत्योपरांत उन्होंने न सिर्फ अपना देह दान कर चिकित्सा-शास्त्र पढ़ने वाले युवकों के अध्यापन हेतु अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को समर्पित करने का संकल्प किया बल्कि दस हजार रुपये की अग्रिम राशि भी समिति को दी जिससे देश के किसी भी भाग से उनका शांत शरीर इस कार्य हेतु उचित स्थान पर लाया जा सके।
ऐसे राष्ट्र पुरुष व महामनीषी को हम सब का शत् शत् नमन् !
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है- तिलक यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक