अन्ना और रामदेव में अंतर
मेरे एक मित्र ने अन्ना और रामदेव के आन्दोलन को एकसा बताते कहा, अन्ना का खेल ख़त्म पहले ही हो चुका था| आज रामदेव का खेल भी ख़त्म हो गया| देश वैसे ही चलता रहेगा, जैसे चलता आ रहा है| हंस दाने चुगते रहेंगे और कौवे मोती खाते रहेंगे| अन्ना कहते थे कि "जब तक प्राण हैं लडूंगा", क्या हुआ? बाबा रामदेव को भी, जब सरकार ने कोई अहमियत नहीं दी तो, उन्होंने ने भी ड्रामा ख़त्म करने में ही अपनी भलाई समझी|
जैसा कि मैं पहले भी कहता रहा हूँ , अन्ना और रामदेव में अंतर है| ऐसा भी कह सकते हैं, अंतर है उनके आन्दोलन में| एक किरण बेदी को छोड़, पाखंडियों का गिरोह था| मुद्दा भी लोकपाल बिल का पाखंड तक सीमित था, खंड खंड हो गया| दूसरा रामदेव और मुद्दा ठीक थे| लूट का पैसा देश का है, देश में वापस आना चाहिए| इसीने शासकों के पसीने निकाले, तो रामदेव पर दुधारी चलाई गई| एक सामानांतर अन्ना को उठाया, फिर राम लीला मैदान में रावण लीला रची गई|! आज तक शत्रु सेना भी रात को वार नहीं करती, सोते हुए नृशंसता की सीमा पार की गई| जिस अन्ना को झाड़ पर चडाया था, मिशन रावण लीला के बाद उसे भी झाड़ से गिरा दिया गया| मीडिया ने अन्ना के आन्दोलन को उठाया था, रामदेव के आन्दोलन को दबाने में सरकार को सहयोग किया था ! यह है कथित आज़ादी के आजाद मीडिया का सत्य | तिलक ,
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया !
इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है,
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,
आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है!
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