असम के दंगे बांग्लादेशी घुसपैठ का परिणाम तरुण विजय
असम
 प्रांत भारत की संस्कृति, आध्यात्मिक परंपरा और वीरता का प्रतीक रहा है। 
यही वह ऐसा क्षेत्र है जहां के अहोम राजाओं की शक्ति से मुगल भी घबराते थे।
 आज वही असम भारत के छदम् सेक्यूलरवाद तथा मुस्लिम तुष्टीकरण की अनीति के 
कारण जल रहा है। इस प्रांत के बोडो जनजातीय बहुल क्षेत्र के चार जिलों- 
कोकराझार, चिरांग, बोंगाईगांव और बक्सा में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों
 के हिंदू बोडो लोगों पर हमले में अभी तक सरकारी सूत्रों के अनुसार 38 लोग 
मारे जा चुके हैं तथा एक लाख से अधिक पलायन कर सरकारी राहत शिविरों में शरण
 के लिए बाध्य हुए हैं। कोकराझार और उदारलगुड़ी से मिल रहे समाचार अत्यंत 
भयावह हैं और गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार माना जाता है कि 100 से अधिक 
लोग मारे जा चुके होंगे, सैंकड़ों घर ध्वस्त कर दिए गए हैं और कम से कम ढाई
 लाख लोग बेघर हो गए हैं। किन्तु दिल्ली अपने जश्न में व्यस्त है।
घटना
 19 जुलाई, 2012 को ऑल बोडो लैंड माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन नामक मुस्लिम
 छात्र संगठन के अध्यक्ष मोहिबुल इस्लाम और उसके साथी अब्दुल सिद्दीक शेख 
पर मोटर साइकिल पर सवार दो अनजान युवाओं द्वारा गोली चलाने के बाद भड़की। 
कुछ समय से वहां दो मुस्लिम छात्र संगठनों में आपसी प्रतिस्पर्द्धा के कारण
 तनाव चल रहा था और गोलीबारी भी केवल घायल करने के उद्देश्य से घुटने के 
नीचे की गयी किन्तु स्थानीय बांग्लादेशी मुस्लिम गुटों ने इसका आरोप बोडो 
हिंदुओं पर लगाकर शाम को घर लौट रहे चार बोडो नौजवानों को पकड़कर उन्हें 
वहशियाना ढंग से तड़पा-तड़पाकर इस प्रकार मारा कि उनकी टुकड़ा-टुकड़ा देह 
पहचान में भी बहुत मुश्किल से आयी। इसके साथ ही ओन्ताईबाड़ी, गोसाईंगांव 
नामक इलाके में बोडो जनजातीय समाज के अत्यंत प्राचीन और प्रतिष्ठित ब्रह्मा
 मंदिर को जला दिया गया। इसकी बोडो समाज में स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुई। 
आश्चर्य की बात यह है कि प्रदेश सरकार और पुलिस को घटना की पूरी जानकारी 
होने के बाद भी न सुरक्षा बल भेजे गए और न ही कोई कार्यवाही की गयी। यद्वपि
 बोडो स्वायतशासी क्षेत्र के चार जिलों धुबरी, बोंगाईगांव, उदालगुड़ी और 
कोकराझार में बोडो बड़ी संख्या में हैं किन्तु उनसे सटे धुबरी जिले की 
अधिकांश जनसंख्या बांग्लादेशी मुस्लिमों से युक्त है। वहां कोकराझार की 
प्रतिक्रिया में हिंदू छात्रों के एक होस्टल को जला दिया गया और 24 जुलाई 
को इन्हीं की एक भीड़ ने राजधानी एक्सप्रेस पर हमला कर दिया। फलतः अनेक 
रेलगाडि़यां रद्द कर दी गयीं और विभिन्न स्टेशनों पर हजारों यात्री बैठे 
हुए हैं। बांग्लादेशी मुस्लिमों की हिंसा 400 गांवों तक फैल चुकी है और 
भारत के देशभक्त नागरिक अपने ही देश में विदेशी घुसपैठियों के हमलों से डर 
कर शरणार्थी बनने पर बाध्य हुए हैं।
असम में 42 से 
अधिक विधानसभा क्षेत्र ऐसे हो गए हैं जहां बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये 
निर्णायक बहुमत हैं। लूट, हत्या, बोडो लड़कियां भगाकर जबरन धर्मांतरण और 
बोडो जनजातियों की भूमि पर अतिक्रमण वहां की आम वारदातें मानी जाती हैं। 
ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर बोडो क्षेत्र है, जहां 1975 के आंदोलन
 के बाद बोडो स्वायत्तशासी परिषद् की स्थापना हुई, जिससे कोकराझार, बक्सा, 
चिरांग और उदालगुड़ी जिले हैं। इस परिषद् का मुख्यालय कोकराझार में है। 
बोडो लोग सदा बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के हमलों का शिकार होते आए
 हैं। दो साल पहले हावरिया पेट नामक गांव में स्थापित मदरसे के लिए वहां के
 मुस्लिमों ने काली मंदिर परिसर में शौचालय बनाने की कोशिश की थी, जिसका जब
 स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो दो बांग्लादेशी हिंदू युवाओं की हत्या की 
गयी। एक अन्य घटना में इसी क्षेत्र में जब एक घुसपैठिये मुस्लिम युवक ने 
बोडो घर में घुसकर युवती से बलात्कार की कोशिश की और पकड़ा गया तो 
गांववालों ने उसकी पिटाई की। कुछ देर में उसके गांव के मुस्लिम भी आ गए, 
जिन्होंने भी उस युवक को पीटा फलतः उसकी मृत्यु हो गयी। अब घबराकर उन 
मुस्लिम गांववालों ने भी हिंदुओं पर आरोप लगा दिया और फलतः पूरे गांव को 
लूट लिया गया।
इस प्रकार के सांप्रदायिकता को 
क्षेत्र के विद्रोही आतंकवादी संगठन मुस्लिम यूनाईटेड लिबरेशन टाईगर्स ऑफ 
असम (मुलटा) से समर्थन मिलता है और मुस्लिमों की भावनाएं भड़काने में ऑल 
माईनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (आमसू) का भी हाथ रहता है। उल्लेखनीय है कि 
आमसू को प्रदेश सरकार से भी प्रोत्साहन और समर्थन मिलता है। इस प्रकार इस 
क्षेत्र में बांग्लादेशी मुस्लिमों और हिंदु बोडो के बीच लगातार तनाव रहता 
ही है।
सरकार भी बोडो जनजातियों की समस्याओं पर तब 
तक ध्यान नहीं देती जब तक कोई भयंकर आगजनी या दंगा न हो। बोडोलैण्ड 
स्वायत्तशासी परिषद् को 300 करोड़ रुपये की बजट सहायता मिलती है जबकि 
समझौते के अनुसार आबादी के अनुपात से उन्हें 1500 करोड़ रुपये की सहायता 
मिलनी चाहिए। केंद्रीय सहायता के लिए भी बोडो स्वायत्तशासी परिषद को प्रदेश
 सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार को आवेदन भेजना पड़ता है जिसे प्रदेश 
सरकार जानबूझकर विलंब से भेजती है और केंद्र में सुनवाई नहीं होती। इसके 
अलावा बोडो जनजातियों को असम के ही दो क्षेत्रों में मान्यता नहीं दी गयी है। 
कारबीआंगलोंग तथा नार्थ कछार हिल में बोडो को जनजातीय नहीं माना जाता और न 
ही असम के मैदानी क्षेत्रों में। जबकि बोडो जनजातियों के लिए असम में 
स्वायत्त परिषद् बनी और बाकी देश में बोडो अनुसूचित जनजाति की सूची में है।
 10 फरवरी, 2003 को एक बड़े आंदोलन के बाद असम और केंद्र सरकार ने माना था 
कि यह विसंगति दूर की जाएगी किन्तु इस बीच अन्य जनजातियों जैसे- हाजोंग, 
गारो, दिमासा, लालुंग आदि को असम के सभी क्षेत्रों में समान रूप से 
अनुसूचित जनजाति की सूची में डाल दिया गया सिवाय बोडो लोगों के। 
केंद्र
 सरकार और प्रदेश सरकार में वोट बैंक राजनीति के कारण विदेशी घुसपैठियों को
 शरण देकर सत्ता में आने की लालसा के कारण देश का भविष्य इन विदेशियों के 
कारण रक्तरंजित होता दिखता है। आज बांग्लादेशी घुसपैठिये जो उपद्रव असम में
 स्वदेशी और देशभक्त जनता के विरुद्ध कर रहे हैं, वहीं उपद्रव जड़ जमाने के
 बाद दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता में बैठे बड़ी संख्या में बांग्लादेशी 
घुसपैठिये कर सकते हैं। किन्तु तब तक पानी सिर से ऊपर गुजर चुका होगा। क्या 
तब तक भारतीय समाज और राजनेता केवल चुनावी शतरंज खेलते रहेंगे?
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक 
 
 
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