Desh Bhakti ke Geet Vedio

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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है। किन्तु प्रकृति के संसाधनों व उत्कृष्ट मानवीयशक्ति से युक्त इस राष्ट्रको काल का ग्रहण लग चुका है। जिस दिन यह ग्रहणमुक्त हो जायेगा, पुनः विश्वगुरु होगा। राष्ट्रोत्थानका यह मन्त्र पूर्ण हो। आइये, युगकी इस चुनोतीको भारतमाँ की संतान के नाते स्वीकार कर हम सभी इसमें अपना योगदान दें। निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!

स्व आंकलन:

: : : सभी कानूनी विवादों के लिये क्षेत्राधिकार Delhi होगा। स्व आंकलन: हमारे पिटारे के अस्त्र -शस्त्र हमारे जो 5 समुदाय हैं, वे अपना परिचय स्वयं हैं (1) शर्मनिरपेक्षता का उपचार (2) देश का चौकीदार कहे- देश भक्तो, जागते रहो-संपादक युगदर्पण, (3) लेखक पत्रकार राष्ट्रीय मंच, (राष्ट्र व्यापी, राष्ट्र समर्पित)- संपादक युगदर्पण, (4) युग दर्पण मित्र मंडल, (5) Muslim Rashtriya Ekatmta Manch (MREM) आप किसी भी विषय पर लिखते, रूचि रखते हों, युग दर्पण का हर विषय पर विशेष ब्लाग है राष्ट्र दर्पण, समाज दर्पण, शिक्षा दर्पण, विश्व दर्पण, अंतरिक्ष दर्पण, युवा दर्पण,... महिला घर परिवार, पर्यावरण, पर्यटन धरोहर, ज्ञान विज्ञानं, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, कार्य क्षेत्र, प्रतिभा प्रबंधन, साहित्य, अभिरुचि, स्वस्थ मनोरंजन, समाचार हो या परिचर्चा, समूह में सभी समाविष्ट हैं ! इतना ही नहीं आर्कुट व ट्विटर के अतिरिक्त, हमारे 4 चेनल भी हैं उनमें भी सभी विषय समाविष्ट हैं ! सभी विषयों पर सारगर्भित, सोम्य, सुघड़ व सुस्पष्ट जानकारी सुरुचिपूर्ण ढंगसे सुलभ करते हुए, समाज की चेतना, उर्जा, शक्तिओं व क्षमताओं का विकास करते हुए, राष्ट्र भक्ति व राष्ट्र शक्ति का निर्माण तभी होगा, जब भांड मीडिया का सार्थक विकल्प "युग दर्पण समूह" सशक्त होगा ! उपरोक्त को मानने वाला राष्ट्रभक्त ही इस मंच से जुड़ सकता है.: :

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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) - शत शत नमन!



सभी देश भक्तों को हमारे प्रेरणा पुंज पत. चंदर शेखर आजाद के 96 वे जन्म दिवस की शुभकामनाएं
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भगत सिंह के अनन्यतम साथियों में से थे। असहयोग आंदोलन समाप्‍त होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में परिवर्तन आ गया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्‍तान सोशल रिपब्लिकन आर्मी में सम्मिलित हो गए। उन्‍होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे काकोरी काण्ड तथा सांडर्स-वध को पूर्णता दी। 

जन्म तथा प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर आजाद का जन्‍म मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले भावरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ। उस समय भावरा अलीराजपुर राज्य की एक तहसील थी। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी संवत 1956 के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले अलीराजपुर राज्य में रहे और फिर भावरा में बस गए। यहीं चंद्रशेखर का जन्म हुआ। वे अपने माता पिता की पाँचवीं और अंतिम संतान थे। उनके भाई बहन दीर्घायु नहीं हुए। वे ही अपने माता पिता की एकमात्र संतान बच रहे। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। पितामह मूलतः कानपुर जिले के राउत मसबानपुर के निकट भॉती ग्राम के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश के थे। 

संस्कारों की धरोहर

चन्द्रशेखर आजाद ने अपने स्वभाव के बहुत से गुण अपने पिता पं0 सीताराम तिवारी से प्राप्त किए। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे। वे न दूसरों से अन्याय कर सकते थे और न स्वयं अन्याय सहन कर सकते थे। भावरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वा लिए तो तिवारी जी बिना पैसे दिए फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गए। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लाईं इस पर तिवारी जी ने उन्हें खूब डाँटा और 4 दिन तक सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण आजाद ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।

आजाद का बाल्य-काल

1919 मे हुए जलियां वाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी व्यथित किया 1921 मे जब महात्‍मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया तो उन्होने उसमे सक्रिय योगदान किया। यहीं पर उनका नाम आज़ाद प्रसिद्ध हुआ । इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे bandi हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। सजा देने वाले मजिस्ट्रेट से उनका संवाद कुछ इस तरह रहा -
तुम्हारा नाम ? आज़ाद
पिता का नाम? स्वाधीन
तुम्हारा घर? जेलखाना
मजिस्ट्रेट ने जब 15 बेंत की सजा दी तो अपने नंगे बदन पर लगे हर बेंत के साथ वे चिल्लाते - महात्मा गांधी की जय। बेंत खाने के बाद 3 आने की जो राशि पट्टी आदि के लिए उन्हें दी गई थी, को उन्होंने जेलर के ऊपर वापस फेंका और लहूलुहान होने के बाद भी अपने एक दोस्त डॉक्टर के यहाँ जाकर मरहमपट्टी करवायी।
सत्याग्रह आन्दोलन के मध्य जब फरवरी 1922 में चौराचौरी की घटना को आधार बनाकर गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह की bhanti आज़ाद का भी काँग्रेस से मोह भंग हो गया और वे 1923 में शचिन्द्र नाथ सान्याल द्वारा उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर बनाए गए दलहिन्दुस्तानी प्रजातात्रिक संघ (एच आर ए) में शामिल हो गए। इस संगठन ने जब गाँवों में अमीर घरों पर डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके तो तय किया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का तमंचा छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बाद bhi आज़ाद ने अपने niyam  के कारण उसपर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के 8 सदस्यों, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल शामिल थे, की बड़ी दुर्दशा हुई क्योंकि पूरे गाँव ने उनपर हमला कर दिया था। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का nirnay किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने देशभर में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रांतिकारी) बांटा जिसमें दल की नीतियों का ullekh था। इस parche में रूसी क्रांति की चर्चा मिलती है और इसके लेखक सम्भवतः शचीन्द्रनाथ सान्याल थे।

अंग्रेजों की नजर में

इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया । लेकिन इससे पहले ही अशफ़ाक उल्ला खान ने ऐसी घटनाओं का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जाएगा। और ऐसा ही हुआ। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह  लाहिड़ी को क्रमशः 19 और 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया। इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय रहा और एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन यह योजना पूरी न हो सकी। 8-9 सितम्बर को दल का पुनर्गठन किया गया जिसका नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएसन रखा गया। इसके गठन का ढाँचा भगत सिंह ने तैयार किया था पर इसे आज़ाद का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।

चरम सक्रियता

आज़ाद के प्रशंसकों में पंडित मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम bhi था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट जो स्वराज भवन में हुई थी उसका ullekh नेहरू ने 'फासीवदी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचना मन्मनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। यद्यपि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को रूस में समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए एक हजार रूपये दिये थे जिनमें से 448 रूपये आज़ाद की शहादत के samay उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर 1928-31 के बीच शहादत का ऐसा kram चला कि दल लगभग बिखर सा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगतसिंह एसेम्बली में बम फेंकने गए तो आज़ाद पर दल ka pura dayitva aa gaya । सांडर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और फिर बाद में उन्हें छुड़ाने ka pura prayas भी उन्होंने kiya । आज़ाद ke sukhav के viruddh खिलाफ जाकर यशपाल ने 23 दिसम्बर 1929 को दिल्ली के samip वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को 28 मई 1930 को भगवतीचरण वोहरा की बमपरीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था । इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना खटाई में पड़ गई थी। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गाँधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे । झाँसी में रुद्रनारायण, सदाशिव मुल्कापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर मे शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को 1 दिसम्बर 1930 को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में जाते samay शहीद कर दिया था। ve yadi jivit hote to aaj 95 varsh ke hote. unke janam divas ki sabhi desh bhakton ko badhaai.

शहादत

25 फरवरी 1931 से आज़ाद इलाहाबाद में थे और यशपाल रूस भेजे जाने सम्बन्धी योजनाओं को अन्तिम रूप दे रहे थे। 27 फरवरी को जब वे अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम अब आज़ाद पार्क कर दिया गया है) में सुखदेव के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे तो किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। इसी मुठभेड़ में आज़ाद शहीद हुए।
आज़ाद की शहादत की सूचना जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने sabhi काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए उनका अन्तिम संस्कार कर दिया । बाद में शाम के samay उनकी अस्थियाँ लेकर युवकों का एक जुलूस निकला और सभा हुई। सभा को शचिन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीरामबोस की शहादत के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्बोधित किया। इससे पूर्व 6 फरवरी 1927 को मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे क्योंकि उनके देहान्त से क्रांतिकारियों ने अपना एक सच्चा हमदर्द खो दिया था।

व्यक्तिगत जीवन

आजाद एक देशभक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से सामना करते samay जब उनकी पिस्तौल में antim गोली बची तो उसको उन्होंने svayam पर चला कर शहादत दी थी। उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिए धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद डेरे के 5 लाख की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि साधु मरणासन्न नहीं था और वे वापस आ गए। रूसी क्रान्तिकारी वेरा किग्नर की कहानियों से वे बहुत प्रभावित थे और उनके पास हिन्दी में लेनिन की लिखी एक pustak  भी थी। हंलांकि वे svayam पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने मे adhik आनन्दित होते थे। जब वे आजीविका के लिए बम्बई गए थे तो उन्होंने कई फिल्में देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था पर बाद में वे फिल्मो के प्रति आकर्षित नहीं हुए।
चंद्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के 16 वर्षों के बाद 15 अगस्‍त सन् 1947 को भारत की आजादी का उनका सपना पूरा हुआ।
मेरे आदर्श ,मेरी प्रेरणा चन्द्रशेखर आजाद पर लेखन के लिए आभारी हूँ! पत्रकारिता के गटर को साफ करने का प्रयास करते दशक होने को है, आज आप जैसा साथी मिला प्रसन्नता हुई अभी ब्लॉग जगत में संपूर्ण सृष्टि की जानकारी को खंडबद्ध कर विषयानुसार 25 ब्लॉग बनाये हैं yugdarpan.blogspot.com तिलक संपादक युग दर्पण 09911111611,  mihirbhoj.blogspot.com
तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें (बंदी भांति नियम उल्लेख पर्चे निर्णय भी )यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

बुधवार, 7 जुलाई 2010

कश्मीर से आजमगढ़ और असम-कोलकाता तक "मासूम" और "गुमराह" युवकों की भारी बाढ़ आई है भारत में… Kashmir Stone Pelting Assam Pakistani Flag

मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में पुलिस ने एक सूचना के आधार पर 13 संदिग्ध लोगों को पकड़ा है, और उनसे 25 मोबाइल और ढेर सारे सिम कार्ड बरामद किये। इन मोबाइलों में भड़काऊ साम्प्रदायिक भाषण और वीडियो क्लिपिंग पाई गई है। यह 13 लोग उत्तरप्रदेश के बागपत जिले से हैं और सभी की आयु 16 वर्ष से 45 वर्ष के बीच है। ये लोग एक मारुति वैन में कपड़े और कम्बल बेचने के बहाने गाँव-गाँव भ्रमण कर रहे थे तथा रात को मस्जिद में रुकते थे। इन लोगों के मोबाइल से सिमी के भड़काऊ भाषणों की क्लिप्स और बाबरी मस्जिद दंगों के दौरान मुस्लिम नेताओं द्वारा किये गये भाषणों की ऑडियो/वीडियो क्लिप्स बरामद हुई हैं। इनके पास से पश्चिमी मध्यप्रदेश के कुछ जिलों के कई गाँवों के नक्शे भी बरामद हुए हैं, जिसमें कुछ खास जगहों पर लाल रंग से निशानदेही भी की गई है। यदि आप सामाजिक रुप से जागरुक हैं (यहाँ देखें…) तो अपने आसपास की घटनाओं और लोगों पर निगाह रखें…)। फ़िलहाल इन्दौर ATS और शाजापुर तथा उज्जैन की पुलिस इन सभी से पूछताछ कर रही है। ये लोग एक-दो वैन लेकर ग्रामीण भागों में कम्बल बेचने जाते थे और मुस्लिमों की भावनाओं को भड़काने का खेल करते थे। (यहाँ देखें…)

उल्लेखनीय है कि पूरा पश्चिमी मध्यप्रदेश सिमी (Students Islamic Movement of India) का गढ़ माना जाता है, उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, मक्सी, महिदपुर, उन्हेल, नागदा, खाचरौद आदि नगरों-कस्बों में सिमी का जाल बिछा हुआ है। कुछ माह पहले सिमी के सफ़दर नागौरी को इन्दौर पुलिस ने इन्दौर से ही पकड़ा था, जबकि उन्हेल के एक अन्य "मासूम" सोहराबुद्दीन को गुजरात पुलिस ने एनकाउंटर में मारा था, सोहराबुद्दीन इतना "मासूम" था, कि इसे पता ही नहीं था कि उसके घर के कुँए में AK-56 पड़ी हुई है। ऐसे संवेदनशील इलाके में उत्तरप्रदेश से आये हुए यह संदिग्ध लोग क्या कर रहे थे और इनके इरादे क्या थे… यह समझने के लिये कोई बड़ी विद्वत्ता की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते आप सेकुलर और कांग्रेसी ना हों। हालांकि हो सकता है कि ये सभी लोग बाद में न्यायालय में "मासूम" और "गुमराह" सिद्ध हो जायें, क्योंकि इन्हें कोई न कोई "राष्ट्रभक्त वकील" मिल ही जायेगा, और न्यायालय के बाहर तो सीतलवाडों, आजमियों, महेश भट्टों की कोई कमी है ही नहीं।

उधर कश्मीर में "मासूम" और "गुमराह" लड़के CRPF के जवानों को सड़क पर घेरकर मार भी रहे हैं, और पत्थर फ़ेंकने में भी पैसा कमा रहे हैं (यहाँ देखें…)। आजमगढ़ के "मासूम" तो खैर विश्वप्रसिद्ध हैं ही, बाटला हाउस के "गुमराह" भी उनके साथ विश्वप्रसिद्ध हो लिये। उधर कोलकाता में भी "मासूम" लोग कभी बुरका पहनने के लिये दबाव बना रहे हैं (यहाँ देखें...), तो कभी "गुमराह" लड़के हिन्दू लड़कियों को छेड़छाड़ और मारपीट कर देते हैं (यहाँ देखें…)। असम में तो बेचारे इतने "मासूम मुस्लिम" हैं कि उन्हें यही नहीं पता होता कि, जो झण्डा वे फ़हरा रहे हैं वह भारत का है या पाकिस्तान का?


ऐसे "मासूम", "गुमराह", "बेगुनाह", "बेकसूर", "मज़लूम", "सताये हुए", "पीड़ित" (कुछ छूट गया हो तो अपनी तरफ़ से जोड़ लीजियेगा) कांग्रेस-सपा-बसपा के प्यारे-प्यारे बच्चों और युवाओं को हमें स्कॉलरशिप देना चाहिये, उत्साहवर्धन करना चाहिये, आर्थिक पैकेज देना चाहिये… और भी जो कुछ बन पड़े वह करना चाहिये, उन्हें कोई दुख नहीं पहुँचना चाहिये।




बारिश के दिनों में अक्सर भारत की नदियों से पाकिस्तान और बांग्लादेश में बाढ़ आती है, लेकिन "मासूमों" और "गुमराहों" की बाढ़ साल भर उल्टी दिशा में बहती है यानी पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत की तरफ़ को। इसलिये आप ध्यान रखें कि जैसे ही कोई मुस्लिम युवक किसी लव जेहाद या आतंकवादी या भड़काऊ भाषण, या पत्थरबाजी, या छेड़छाड़ जैसी घटना में पकड़ाये, तो तड़ से समझ जाईये और मान भी लीजिये कि वह "मासूम" और "गुमराह" ही है। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं…… बल्कि तीस्ता आंटी, जावेद अंकल, महेश मामा, मनीष तिवारी चाचा, बुरका (सॉरी बरखा) दत्त चाची, और मीडिया में बैठे बुद्धिजीवी लोग आपसे आग्रह कर रहे हैं… तात्पर्य यह है कि समूचे भारत में "मासूमों" और "गुमराहों" की बाढ़ आई हुई है, और इसे रोकना बड़ा मुश्किल है…। और तो और अब "मासूमियत की सुनामी", शीला दीक्षित सरकार की दहलीज और राष्ट्रपति भवन के अहाते तक पहुँच गई है, क्योंकि मासूमों के शहंशाह "अफ़ज़ल गुरु" को बचाने में पूरा जोर लगाया जा रहा है, जबकि उधर मुम्बई में "गुमराहों का बादशाह" अजमल कसाब चिकन उड़ा रहा है, इत्र लगा रहा है…।

ऐसा भी नहीं कि मासूम और गुमराह सिर्फ़ भारत में ही पाये जाते हैं, उधर अमेरिका में भी पढ़े-लिखे, दिमागदार, अच्छी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले शहजाद जैसे युवा और अबू निदाल मलिक जैसे अमेरिका के नागरिक भी मासूमियत और गुमराहियत की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं… (यहाँ देखें…) अन्तर सिर्फ़ इतना है उधर भारत की तरह "रबर स्टाम्प" राष्ट्रपति नहीं होता बल्कि "पिछवाड़ा गरम करने वाली" ग्वान्तानामो बे जैसी जेलें होती हैं…
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चलते-चलते : अन्त में एक आसान सा "मासूम" सवाल (जिसका जवाब सभी को पता है) पूछने को जी चाहता है, कि क्या "गुमराह" और "मासूम" होने का ठेका सिर्फ़ कट्टर मुस्लिमों को ही मिला है? "मुस्लिमों"??? सॉरी अल्पसंख्यकों… सॉरी मुस्लिमों… ओह सॉरी अल्पसंख्यकों… अरे!! फ़िर सॉरी…। छोड़ो… जाने भी दो यारों… दोनों शब्दों का मतलब एक ही होता है… जिसका नया पर्यायवाची है "मासूम और गुमराह"

क्यों उमर अब्दुल्ला साहब, आपका क्या विचार है???
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

शुक्रवार, 18 जून 2010

भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)

तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
Comment: Two tragedies, two very different responses
अमरीकी  राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा के उबाल का कमाल: अमेरिका की समुद्र तटीय सीमा पर ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ सहयोगी ट्रांस ओशियन व हैल्लीबर्टन सभी द्वारा तेल निकासी में असावधानी हुई - दुर्घटना घटी ! इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई साथ ही समुद्री कछुए , पक्षी , डालफिन भी मारे गए ! अमेरिकी पर्यटन व मछली उद्योग को भी क्षति पहुंची !इस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उबल पड़े! विदेशी कं. ब्रि.पै. के क्षेत्र के प्रमुख को बुला लिया (व्हाइट हॉउस)! अमेरिका की विदेश नीति व विदेशियों के प्रति उनका व्यवहार सदा ही मेरी आलोचना का पात्र रहे हैं किन्तु उनके नेता अपने देश व देश वासियों के हितों  का समझौता   नहीं  करते  बल्कि  उनके हित  में करार  करने  को बेकरार  होते  हैं! उनका व्यक्तिगत चरित्र भले ही गिर जाये राष्ट्रीय चरित्र सदा प्रदर्शित  हुआ है!
ओबामा  ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
Comment: Two tragedies, two very different responses
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
भोपाल गैस त्रासदी:- वैसे तो 1984 में 2 प्रमुख दुखद घटनाएँ घटी, किन्तु यहाँ एक की तुलना उपरोक्त से की जा सकती है चर्चा में ली जाती है! वह है भोपाल गैस त्रासदी --बताया जाता है इसमें 15000 सीधे सीधे दम घुटने से अकाल मृत्यु का ग्रास बने, 5 लाख शारीरिक विकार व भयावह कष्टपूर्ण अमानवीय यंत्रणा/त्रास /नरक भोगते हुए  मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! तो उनकी अगली पीडी भी इसे भोगने को अभिशप्त होगी! इससे वीभत्स और क्या होगा? इस सब के लिए उनका अपना कोई दोष नहीं था किन्तु दूसरों के दोष का दंड इन्हें भुगतना पड़ा ! क्यों? पशु पक्षियों का हिसाब हम तब लगाते यदि मानव को कीड़े मकोड़े से अधिक महत्व दे पाते? उद्योग/व्यवसाय की हानी तब देखते जब अपनी तिजोरियां स्विस खातों तक न भरी जातीं!एंडरसन को दिल्ली बुला कर कड़े शब्दों में देश/ जनहित का करार करने का दबाव बनाना तो दूर दिल्ली से आदेश भेजा गया उसे छोड़ने का, वह भी पूरे सम्मान के साथ ?
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?

कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
  दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह  बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
 एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी  और 5 दिसंबर को न्यायलय  के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन  किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट  है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं हैअपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

रविवार, 13 जून 2010

We have to learn "Defend Nation is more important than defend Sonia"

 Modi sends `Maut ka saudagar' ghost back to Sonia
14/06/2010
 Patna: Using Sonia Gandhi's "Maut ka Saudagar" (Merchant of Death) barb against her, Gujarat Chief Minister Narendra Modi on Sunday attacked the Congress president over her "silence" on the Bhopal verdict, and charged the United Progressive Alliance (UPA) government with failing to check Maoist violence and rising prices.
Addressing a Bharatiya Janata Party (BJP) rally at the conclusion of the party's national executive meeting here, Modi referred to Sonia Gandhi as "Madam Sonia" and wondered why she had not spoken on the Bhopal verdict.
"Why are you quiet on Bhopal, Madam Sonia? The country wants to know who was the Maut ka Saudagar in Bhopal," he said.
"Speak up. Break your silence. The country wants to know what happened in Bhopal," Modi added.
Modi sends `Maut ka saudagar' ghost back to Sonia
The "Maut ka Saudagar" barb was used by Sonia Gandhi in reference to Modi during her campaign for the Gujarat assembly polls in 2007. It referred to the 2002 communal riots in Gujarat in which over 1,000 people, most of them Muslims, were killed.
The BJP has attacked the Congress over the release of Union Carbide chief Warren Anderson, an accused in the Bhopal gas leak case, saying the party should seek forgiveness from people on the issue. The Congress was in power in Madhya Pradesh and at the centre when the gas tragedy took place in Bhopal in 1984, killing and maiming thousands.
The BJP has been highly critical of the manner in former Union Carbide CEO Warren Anderson was permitted to leave the country in the wake of the Dec 2-3, 1984 Bhopal gas tragedy that killed thousands instantly and many more in the years since.
A Bhopal court last Monday sentenced seven former Union Carbide India Limited officials to two years imprisonment but they were immediately granted bail.
Modi sends `Maut ka saudagar' ghost back to Sonia
In his nearly 30-minute speech, Modi also attacked the Sonia Gandhi and the UPA government over the price rise. He said the rise in prices of essential commodities had made life difficult for common people but the leader of UPA was keeping quiet.
Modi, who came under attack from Bihar Chief Minister and Janata Dal-United leader Nitish Kumar over an advertisement which referred to the relief work done by the Gujarat government in the state, said the BJP's politics and its mantra was development.
He also spoke of the development strides made by Gujarat and thanked the people of Bihar for "showering affection" on him.
Ignoring Nitish Kumar, the Gujarat chief minister praised BJP leader and Bihar Deputy Chief Minister Sushil Modi for the development strides made by the state under the National Democratic Alliance government. He steered clear of the controversy over the advertisement featuring him and Nitish Kumar.
Modi also charged the UPA with not doing enough to contain Maoist violence.
"The centre is not taking any tough action against Maoists," he said, adding that some people in the ruling party see it only as a socio-economic problem.
"The socio-economic condition suitable for growth of Maoists was created by the Congress party that ruled the country for over 50 years," he said.
Meanwhile, the BJP on Sunday ended its two-day national executive meeting with a scathing attack on the Congress-led United Progressive Alliance government and its chairperson Soni Gandhi for failing to control rising prics, increased Maoist violence and the handling of the Bhopal gas tragedy case. A rally at the end of the national executive meet witnessed an all round attack by BJP speakers on the UPA.
In his speech, BJP president Nitin Gadkari attacked the Congress for permitting Anderson to leave the country. "What was the need to send him out of the country?" he asked.
In a resolution passed by the party at the meeting, BJP described the first year of the United Progressive Alliance (UPA) government's second stint as disappointing, just like the "general unsatisfactory record" of UPA-I.
The party strongly criticised Prime Minister Manmohan Singh, saying he had not been able to curb the price rise despite being an economist.
The BJP accused the government of being soft on terror and condemned the delay in clearing the file of parliament attack convict Afzal Guru.
It said the first year of UPA-II showed the "inability of the prime minister" to take any action against "notorious cases of corruption", referring to the 2G spectrum scam, and accused UPA ministers of "lobbying for IPL (Indian Premier League) franchise".
In another resolution, the BJP accused the government of conducting "systematic manoeuvres to destabilize and derail" non-Congress or non-UPA state governments and especially targeting popular BJP chief ministers like Modi.
BJP veteran L. K. Advani, in his concluding remarks at the meeting, said the BJP and the erstwhile Jan Sangh had played a major role in fostering democracy in the country. He said that the Congress government was not alive to the Chinese activities on the border in 1962 and added that there was a vast difference in the level of infrastructure in border areas between the two countries.
Party MP from Patna, Shatrughan Sinha, who had earlier indicated that he would not attend the rally, gave vent to his feelings.
"I fail to understand the way the party is being run. Senior leaders like Yashwant Sinha, B.C. Khanduri, Arun Shourie and Hema Malini are being cornered," Sinha said, adding that the issue of BJP's functioning should be raised at the party level.
The national executive meeting was attended by top BJP leaders like Sushma Swaraj, Arun Jaitley, Rajnath Singh, M. Venkaiah Naidu, Ananth Kumar and the chief ministers of BJP-ruled states.
The BJP is the junior partner in the NDA coalition in Bihar that is led by the Janata Dal-United (JD-U).यह santoligara,Jawahar.P.Sekhar,bips bhim,Rajendracholan,Indians Vs Indians,slalit,Bharat Bhushan,वेंक्योर्ग,indian1963,Sharai Desai,paln,Solid Indian+nirman123,chandra shekar,suvarchas,IndosecularDoctor_Logic
Monday, 14 June 2010 10:45:10,
Is law and order a consideration for a criminal to be allowed to escape with Govt machinery? or not hanged ( Afzal) for years even if pronounced guilty by non other than the Supreme Court of India , for as haenous crime as attack on parlimaent of India? Even if it is, is the right way to run a state? In that case no body should be prosecuted, or all those who can make rucuous should be freed or not tried. Well, well, who are they fooling to? Are we Indians so stupid to take on these arguments?
@ matpan
It is not an issue that Mrs Sonia is sensible or not… It is loud and clear that ConGress has “Got the money in the exchange of the death of 15000 people and let go Mr Anderson” …weren’t they human? Are you a dead brain? All human are equal and the Godhra riot were triggered by burning 60 Hindus… where were you that time? if any of your leader or organization would have said sorry to Gujarat…. Then nothing would have happened… SO DO NOT BE BIASED… WE ARE HERE TO GET JUSTICE … FOR ALL HUMAN… NOT ONLY FOR HINDUS OR MUSLIMS
Besides the loss of innocent human lives the incident has demonstrated before the whole world that  :
 - Indians can be purchased over a phone call !
- It is LEGALLY possible to install untested technology , do away with safety norms  
  and drastically reduce the cost of operations in India
- The Learned Political Leaders of India will support the ndustries for a consideration
  that would not increase the costs too much
- Local Indians can be hired (at a very small cost) to run the plant and machinery.
 Now we want Obama to use his power as the US president for sorting out this issue ! 
 May be Mr.Singh receives a call from him now !
Monday, 14 June 2010 14:05:55
alpha is so biased(mad) against Modi  that dont want to listen/understand
What should be our concern ?
1. It is not the Q of Modi or Sonia but keeping Nations Pride. AND THIS is SOLD by Cong. Time & Again. Had Netaji been cong. President in 1931 cong. or on choice of First PM Ghandhi's tilt for Nehru be monitored, We had shown Better than the Magic shown by JAPAN after Nuclear bombing on 2 cities. Nation had already paid enough for Gandhis love to Nehru. 
2. It is clear that Anderson could escape because cong. was paid. Leave aside Role of then PM. or whether Mm Sonia could play a role that time or not. But Now What she had to say? This should not be ignored. But ignroing all these facts some people mostly (those hasitate to even disclose their identity, bark to comment as 151250,kumar19,Bobby Sakariah,jirasi,matpan,alpha amshul,JPD999) It seems these people had shared that Anderson Money. How much they know about Sonia that they are so confident about her Goodwill created by Media Purchased in the name of Huge Ads for crores of Rs. by Central Govt. & MNCs. looting this Country.
Monday, 14 June 2010 15:02:30
Mad Ali says kick Bjp out of India So that Indians live peacefully. But Q is Who is Indian? Are those inians who burnt inian flags in SriNagar/ Kashmir valley? Host Pakistani flag at their house? Shout pakistan Z...? Why Kashmiri Pandits thown out of Kashmir valley? Who are so called mujahidins? Why people convicted/known anymies of humanity be protected? Then Who should Live & who should Leave be decided once and for All? Do You agree?
It seems these people had shared that Anderson Money. Why How much they know about Sonia that they are so confident about her Goodwill created by Media Purchased in the name of Huge Ads for crores of Rs. by Central Govt. & MNCs. looting this Country.
कुछ लोग उन्हें बचाने में लगे हैं जिनके बारे में कहा गया है: "क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे! कांग्रेस व सोनिया की असली फितरत इस देश का (बिका हुआ) मीडिया सामने  क्यों नहीं लाता?" अरे भाई सत्ता में अर्धशतक लगा कर भी मीडिया को न खरीदते तो सोनिया को खलनायिका से नायिका कैसे बनाते? आम आदमी की गर्दन का ऐसा कल्याण कैसे होता? झेले भी- रो भी न पाए?
Monday, 14 June 2010 17:02:27
Unfortunately, hopeless comments from hope India? What india could hope now? may it be accident, but honourable escape of Anderson by state Govt.? What was CM's interest? Sequense of calls from US Pres. to PM house, PM house to CM/MP, his pro active actions all are by accident? Tragic incident don't allow me to laugh on foolish comments! but your commitment to defend Sonia stands nowhere before my commiment to defend my country! Nation first & non else!
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- हमारी प्रतिबद्धता होनी चाहिए राष्ट्र बचाएं न कि सोनिया (या कोई अन्य अपराधी) बचाएं! तिलक

गुरुवार, 3 जून 2010

बंगाल का लालगढ़ ध्वस्त

तिलक राज रेलन  -पश्चिम बंगाल में गत् दिनों कोलकाता  महानगर  व  स्थानीय निकायों के चुनावों के परिणाम घोषित होने पर जैसी कि अपेक्षा की जा रही थी, राज्‍य के अधिकांश नगर निगमों पर ममता बैनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने अपना अधिकार  जमा लिया है। कोलकाता के 141 वार्ड वाले नगर निगम में त्रि. मू. कांग्रेस को 95 में विजय मिली । तथा 16 जिलों के 81 स्थानीय निकायों में 24 त्रि. मू. काग्रेस की,33 त्रिशंकु व  7 काग्रेस को मिली; शेष 18 ही बचीं वामपंथियों के पास । जिलानुसार वामपंथियों के गढ़ उत्तरी 24 परगना की 16 में से 12 तथा हुगली की 16 में से 11 तथा बिधान नगर 25 में से 16 त्रि.मू.का. ने छीन ली हैं । और राज्‍य में अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति पर चलने का दंभ भरने वाली कांग्रेस तो कई जगहों पर स्पर्धा  से भी बाहर दिखाई देती है । परस्पर टकराव से केंद्र सरकार में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सहयोगी पार्टी होने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अपने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। जबकि कांग्रेस पाटी ने भी राज्‍य के निकायों की अधिकांश सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। इस प्रकार पश्चिम बंगाल में अधिकांशत: त्रिकोणीय संघर्ष  की स्थिति बन गई थी जिसमें अन्तत: तृणमूल कांग्रेस ने ही सफलता पाई।इन परिणामों के भावी संकेत यही हैं कि बंगाल के लालगढ़ ध्वस्त होने के साथ ही देश की राजनीति पर भी दूरगामी प्रभाव होंगे ।
पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम आ जाने के बाद अब राजनैतिक क्षेत्रों में कई प्रकार के गणित लगने लगे हैं। लगता है कि गत् 3 दशकों से राज्‍य विधानसभा पर निंतर अपना लाल परचम लहराने वाला वामपंथी दल 2011 के निर्धारित विधानसभा चुनावों के बाद, क्या अब पश्चिम बंगाल के राजनैतिक क्षितिज से अपनी बिदाई लेने वाला है? सोनिया व राहुल की  कांग्रेस पार्टी के ‘एकला चलो’ की नीति भी क्या पश्चिम बंगाल में असफल है? दिल्ली दरबार की राजनीति में ममता बैनर्जी को अपने पीछे रखकर संप्रग सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी क्या पश्चिम बंगाल में अपना  राजनैतिक अस्तित्व बचाने हेतु ही वहां ममता बैनर्जी की पिछलग्गू बनी रह सकेगी? पश्चिम बंगाल की राजनीति में आने वाला समय क्या अब ममता बैनर्जी का होगा? एक बार फिर राज्‍य में इसी प्रकार का त्रिकोणीय संघर्ष होगा या कांग्रेस पार्टी अपनी ही गोद में पाली-पोसी नेत्री ममता बैनर्जी द्वारा गठित तृणमूल कांग्रेस के पीछे चलकर तथा उनकी शर्तों,उनकी दया व उन्हीं के द्वारा तय की गई सीटों को लेकर अपने अस्तित्व को पश्चिम बंगाल में बचाए रखने के लिए बाध्य होगी?

एक यक्ष प्रश्न  यह भी कि आगामी 1 वर्ष में वामपंथी अपने इस ढहते हुए किले को बचाने के लिए अब क्या अंतिम प्रयास करेंगे? अपनी इन चेष्टाओं  में वे कितने सफल  हो सकेंगे। एक और यक्ष प्रश्न पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम आ जाने के बाद यह भी खड़ा हो रहा है कि गत् 3 दशकों तक वामपंथी विचारधारा व कार्य के बल पर जमे थे  या जनता को वामपंथ का विकल्प कांगेस में नहीं मिल पा  रहा था जो वह अब ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में देख रही है।
स्थानीय निकायों के चुनावों में हुए पार्टी प्रदर्शन को वाम नेता अपने लिए ख़तरे की घंटी अवश्य  स्वीकार कर रहे हैं। परंतु साथ-साथ झेंप मिटाने हेतु उनका यह भी कहना है कि पार्टी ने कई चुनाव क्षेत्रों में 2009 में हुए संसदीय चुनावों से भी बेहतर प्रदर्शन किया है।कहने को तो वाम नेता कितना ही कहें कि राज्‍य की जनता के लिए वे इतना कुछ नहीं कर पाए जितना कि जनता उनसे अपेक्षा रखती थी। वे 2011 के विधानसभा चुनाव से पूर्व अवश्य इस बात की कोशिश करेंगे कि वे मात्र इस 1 वर्ष में यह देखें कि किन कारणों के चलते जनता उनसे दूर होती जा रही है तथा उन्हें पुन: अपने विश्वास में कैसे लिया जाए? यह भी कि वामपंथ की स्थिति सुधरनी शुरु हो चुकी है।
जहाँ तक प्रश्न है  कांग्रेस व तृणमूल के बीच संबंधों  का तथा इन  के बीच पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी के अपने अकेले अस्तित्व का, तो इस विषय पर कांग्रेस पार्टी अवश्य दुविधा में पड़ती दिखाई दे रही है। गत् कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश व बिहार तथा अब पश्चिम बंगाल सहित कई राज्‍यों में अपने अकेले दमखम पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम करती रही है। उत्तर प्रदेश में इस रणनीति के कुछ  सकारात्मक परिणाम भी मिले तथा बिहार में अपेक्षाकृत कम। परंतु पश्चिम बंगाल के इन नवीनतम स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों ने तो कांग्रेस की ‘एकला चलो’ की रणनीति हवा ही निकाल दी है।
एक तो  क्षेत्रीय व स्थानीय समस्याओं को तथा क्षेत्र की जनता की नब्ज  को भी उसी राज्‍य के प्रतिनिधि नेतागण कहीं अधिक भली प्रकार समझते हैं। इस समय लगभग पूरे देश का अधिकांश मतदाता अपने राज्‍य से जुड़ी समस्याओं, उसके विकास तथा उत्थान की बातों को सुनने में अधिक रूचि लेता दिखाई दे रहा है। अर्थात् क्षेत्रीय समस्याएं राष्ट्रीय सोच व समस्याओं पर हावी होती जा रही हैं। इसका मुख्य  कारण है आरंभ से ही सत्ता में रहकर कांग्रेस अपनी कपट नीति व कलंकित चरित्र के हाथों जनता का विश्वास खो चुकी थी । स्पष्टत: ऐसे में क्षेत्रीय प्रश्नों के कारण क्षेत्रवाद  से सम्मोहित जनता फंसी संकीर्ण विघटनकारी राजनीति के क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच। क्या कांग्रेस तो क्या भारतीय जनता पार्टी इन सभी पर क्षेत्रीयता के बादल मंडराते दिखाई दे  रहे हैं।
 प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा जिला होगा, जहां वामपंथ के कद्दावर नेताओं ने अपनी हार के सितमगरों से समकक्ष होने के लिए कोई ठोस प्रबन्ध किए होंगे। सच कहें तो इनकी दुर्बल मन:स्थिति ही हार का प्रमुख कारण है। यह तथ्य किससे छिपा है कि वाममोर्चा गठबंधन के पास लोकसभा के ठीक पहले तक लगभग 50% जिलों का समर्थन था। मान भी लिया जाए कि जिले  में घूमघूमकर ममता बनर्जी ने अपने पक्ष में लहर पैदा की, तो इससे समतुल्य  होने के लिए वामपंथी नेताओं ने राजनैतिक प्रबंध क्यों नहीं किए?
नंदीग्राम और सिंगुर जैसे मसले लोकसभा चुनाव के पहले तक वामपंथियों के पक्ष में माने जा रहे थे। व्यावसायिक सोच  के लोग ममता बनर्जी को कभी भी गंभीरता से नहीं लेते थे। 2009 के प्रारंभ में कोलकाता के धर्मतल्ला में 26 दिनों की भूख हड़ताल से लेकर सिंगुर में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तक लगातार चले अनशन तक ममता बनर्जी का कथन कभी भी शहरी मतदाता के गले नहीं उतरा। लोग ममता को हड़तालवादी, विनाशकारी और न जाने क्या-क्या कहने लगे थे। टाटा का नैनो प्रकल्प बंगाल से गुजरात चला गया, तब भी ममता पर ही तर्जनी उठी थी। वामपंथियों ने इस जनभावना को अपने पक्ष में रखने का कोई प्रबन्ध नहीं किया। लोकसभा चुनाव के पहले तक पूरा मीडिया ममता के विरुद्ध  था। लोग ममता को विकास का बनाम मानते थे। किन्तु, अकेली ममता बनर्जी ने वामपंथियों के लालगढ़ को भेदने में एक-एक पल का भरपूर उपयोग  किया।
ममता बैनर्जी ने आरंभ में सदा ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य व नेत्री के रूप में वामपंथियों के समक्ष कांग्रेस के पक्ष में संघर्ष किया है तथा राज्‍य में कांग्रेस को जिंदा रखे रहने में अपना पूरा योगदान दिया। परंतु राजीव गांधी के समय में जब उन्हें यह आभास होने लगा कि राष्ट्रीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी अब वामपंथियों की ओर झुकने लगी है तथा भाजपा को रोकने के लिए वामपंथियों से हाथ मिलाने की तैयारी कर रही है। उसी समय (राजीव गांधी की हत्या के पश्चात) ममता बेनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया और 1997 में अपनी अलग पार्टी गठित कर ली।
ममता का यह मानना है चूंकि कांग्रेस व वामपंथी दो भिन्न-भिन्न  विचारधाराएं हैं अत: यह दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते।वामपंथियों की पराजय  का एक और कारण यह भी रहा है कि वामपंथी प्रगट में गरीबों, किसानों, श्रमिकों, कर्मचारियों,कामगारों व दिहाड़ीदारों के पक्ष में बोलते नजर आते हैं। किन्तु व्यवहार में तिजोरी भरने के लोभ में वह पूंजीवाद व उद्योगपतियों के समर्थक नजर आने लगते है। ऐसे मे सिंगूर जैसी घटना होने पर किसानों व मजदूरों के पक्ष में जहां वामपंथी खड़े नजर आते थे वहां ममता की टी एम सी खड़ी दिखाई दी। तो दूसरी ओर वामपंथी सरकार के जनविरोधी रूप में सशस्त्र बंगाल पुलिस।ऐसे में संघर्ष के व्यावहारिक रूप में बंगाली जनता ने वामपंथी दलों के बजाए ममता बैनर्जी को अपने पक्ष में संघर्ष करते पाया।
यही नहीं, इस सवाल का जवाब तो राज्य में निवेश करने वाले बड़े कारोबारी में मांग रहे हैं कि सोमनाथ चटर्जी का उदारवादी चेहरा दिखाकर एक दशक पहले औद्योगिक विकास निगम के माध्यम से प्रतिदिन जो सैंकड़ों-हजारों करोड़ के निवेश का झांसा दिया गया था, उसमें कितना निवेश कारगर रूप में लगा और कितनों को रोजगार मिला? गरीब किसानों की जमीन आज बंजर क्यों पड़ी है? अरबों रूपए खपाकर कारोबारी क्यों रो रहे हैं?
वामपंथियों के पास अब समय नहीं रह गया है।अब 35 वर्ष की सत्ता के बाद एक बार मोर्चाके शासन पर विराम लगना अवश्यंभावी प्रतीत हो रहा है।राज्‍य के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम में सिंगूर व नंदीग्राम जैसी घटनाओं की छाया भी स्पष्ट  देखी जा सकती है। कुल मिलाकर राज्‍य की जनता ने स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों के माध्यम से राज्‍य की भविष्य की राजनीति के मस्तक पर जो रचना लिखी है उससे इन परिणामों को पश्चिम बंगाल राज्‍य का निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।
किन्तु कुछ लोग यह शंका जाता रहे हैं  कि ममता बनर्जी के हुकूमत में आ जाने से भी प्रदेश में चल रहा अमावसी दौर नया उजाला नहीं ला पाएगा। ममता की अपनी लड़ाकू छवि हो सकती है, पर उनकी अकड़, उनकी जिद, उनका बचपना, उनका बिदकना, उनकी कार्यशैली प्राइमरी में पढऩे वाले बच्चे की चिंतनधारा से अलग नहीं है। उनके साथ जो चेहरे हैं, और उन चेहरों के पीछे जो सच छिपा है, उन चेहरों से जो भाषा निकलती है-वह कहीं से गणतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करने वाले के लिए सम्मानजनक नहीं है। केंद्रीय मंत्री बन चुके तृणमूल के कुछ बड़े नेताओं की भाषा से तो वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखने वाला छोटा कैडर भी सभ्य भाषा बोलता है। वामपंथियों की साथ चलने वाले मोर्चे की सहोदर पार्टियों के नेताओं का विरोध सहने का धैर्य है, लेकिन यह सब गुण ममता में कहीं नहीं हैं। जिद और अकड़ पर सूबे में हुकूमत चलाने की सोच उन्हें कभी भी पटखनी दे सकती है।
हो सकता है यह वामपंथी निकटता के पत्रकारों कि सोच या अनुभव हों? यदि यह सही है तो ममता को शीघ्र ही इस पर नियंत्रण पाना होगा! तभी वामपंथी किला पूरी तरह स्थाई रूप से ध्वन्स्त होगा! यहाँ अंत नहीं गुजरात व बिहार कि भांति राज्य को सकारात्मक विकल्प चाहिए! शुभ कामनाओं सहित
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

सोमवार, 24 मई 2010

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

म्पूटर आज के समय का सर्वाधिक विश्वसनीय व् महत्वपूर्ण उपकरण है जिसपर हम पूर्णतया निर्भर करते हैं! सर्च इंजन से कुछ भी खोज सकते हैं मात्र एक संकेत पर ! मदारी ने कुछ चमत्कार दिखलाय, (पहले के मदारी तो खेल करतब से मनोरंजन कर दो समय की रोटी की भीख मानता था) हमारे देश के नेताओं ने देश का भविष्य ही मदारी के हाथों सौंप दिया! कभी वायरस, कभी हेकिंग, कभी गुप्त जानकारी से बेंक से खाता खाली! कुछ दिन पूर्व नोएडा पुलिस का नेटवर्क जो विदेशी संचित था बंद हो गया था! संभवत: यह पुराभ्यास था इस देश को ठप्प करने का, अथवा इस धमकी से कुछ मनवाने का प्रयास! अब हम आगे बड़ते हैं -हमने खोजना चाह भारत योग संस्थान, हमें उसके स्थान पर 3 प्रकार के परिणाम विदेशों के योग क्लब , कई प्रकार के संसथान भारत पेट्रोलियम से लेकर भारत के वेश्यालयों तक की जानकारी मिलेगी! अब आप भारत योग संसथान पंजीकृत कर पुन: खोजना चाहें निश्चित नहीं है खोज पाना ! कई बार हम अपनी ही साईट खोलने हेतु पासवर्ड डालते है- आपका पासवर्ड स्वीकार नहीं होता आपको कहा जाता है आप पासवर्ड भूल गए हैं आपके दुसरे पते पर नया अवसर आपको दिया जाता है यदि अन्य पता नहीं है तो ?.. आपको दास बनाने वाले मुक्ति के सभी मार्ग बंद कर देते हैं ! एक है कम्पूटर का ज्ञान कोष विकिपीडिया एक बार उसका अनुभव लिया मेटाविकी कई विषयों पर कई भाषाओँ पर अपनी भाषा देखने की उत्सुकता जगी तो पाया विश्व के कई ऐसे देश जिनका नाम भी नहीं जाना जाता उनकी भाषा, नेपाली तक में मेटा विकी है किन्तु हिंदी में नहीं! विश्व की महाशक्ति बनने के प्रयास में हर छोटे बड़े देश की धमकी सुनते सुनते हम मेटा विकी हिंदी में नहीं कर पाए !

चलिए राष्ट्र निर्माण का प्रयास करते हैं ! अपनी बात सर्व सहमती की होनी चाहिए, इस विषय पर अन्य विद्वानों के विचार जानने के लिए विषय अंकित कर बटन दबाया कई लेखकों की सूचि मिली, विषय विवरण पड़कर धीरज बंधा की हमारे विचार से मेल खाता है ! ज्ञान बंटोरने लगे तो सभी अमेरिका के राष्ट्र निर्माण की बात करते मिले! अँगरेज़ कहते थे भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था अब अमेरिका व् मैकाले की अनुचित संतानों को पुष्टि मिल गई ! पराश्रित विकास क्रम में कभी भी नीचे से सीडी खिंच सकती है किन्तु स्वावलंबी धीरे चले तो भी विजय निश्चित, निर्बाध है !
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक