Desh Bhakti ke Geet Vedio

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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है। किन्तु प्रकृति के संसाधनों व उत्कृष्ट मानवीयशक्ति से युक्त इस राष्ट्रको काल का ग्रहण लग चुका है। जिस दिन यह ग्रहणमुक्त हो जायेगा, पुनः विश्वगुरु होगा। राष्ट्रोत्थानका यह मन्त्र पूर्ण हो। आइये, युगकी इस चुनोतीको भारतमाँ की संतान के नाते स्वीकार कर हम सभी इसमें अपना योगदान दें। निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!

स्व आंकलन:

: : : सभी कानूनी विवादों के लिये क्षेत्राधिकार Delhi होगा। स्व आंकलन: हमारे पिटारे के अस्त्र -शस्त्र हमारे जो 5 समुदाय हैं, वे अपना परिचय स्वयं हैं (1) शर्मनिरपेक्षता का उपचार (2) देश का चौकीदार कहे- देश भक्तो, जागते रहो-संपादक युगदर्पण, (3) लेखक पत्रकार राष्ट्रीय मंच, (राष्ट्र व्यापी, राष्ट्र समर्पित)- संपादक युगदर्पण, (4) युग दर्पण मित्र मंडल, (5) Muslim Rashtriya Ekatmta Manch (MREM) आप किसी भी विषय पर लिखते, रूचि रखते हों, युग दर्पण का हर विषय पर विशेष ब्लाग है राष्ट्र दर्पण, समाज दर्पण, शिक्षा दर्पण, विश्व दर्पण, अंतरिक्ष दर्पण, युवा दर्पण,... महिला घर परिवार, पर्यावरण, पर्यटन धरोहर, ज्ञान विज्ञानं, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, कार्य क्षेत्र, प्रतिभा प्रबंधन, साहित्य, अभिरुचि, स्वस्थ मनोरंजन, समाचार हो या परिचर्चा, समूह में सभी समाविष्ट हैं ! इतना ही नहीं आर्कुट व ट्विटर के अतिरिक्त, हमारे 4 चेनल भी हैं उनमें भी सभी विषय समाविष्ट हैं ! सभी विषयों पर सारगर्भित, सोम्य, सुघड़ व सुस्पष्ट जानकारी सुरुचिपूर्ण ढंगसे सुलभ करते हुए, समाज की चेतना, उर्जा, शक्तिओं व क्षमताओं का विकास करते हुए, राष्ट्र भक्ति व राष्ट्र शक्ति का निर्माण तभी होगा, जब भांड मीडिया का सार्थक विकल्प "युग दर्पण समूह" सशक्त होगा ! उपरोक्त को मानने वाला राष्ट्रभक्त ही इस मंच से जुड़ सकता है.: :

बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

मंगलवार, 1 मार्च 2011

HC notice to Rahul Gandhi on missing girl- rediff.com

HC notice to Rahul Gandhi on missing girl- rediff.com

March 01, 2011 20:45 IST
The Lucknow [ Images ] bench of Allahabad high  court on Tuesday issued notice to Congress general secretary Rahul Gandhi [ Images ] on a petition seeking information about the whereabouts of a missing girl and her family.

The girl and her family are alleged to be "untraceable" ever since they called on Rahul during one of his visit to his parliamentary constituency, Amethi on December 13, 2006.

Moving a petition on behalf of the family, Kishore Samrite, former Samajwadi Party MLA from Madhya Pradesh [ Images], has accused the Congress celebrity and his five foreigner friends of indulging in criminal assault on the 24-year-old Sukanya Singh.

Claiming to have learnt this from some news website, the petitioner has stated, "I was moved by the news. So I came all the way from my home in Balaghat, Madhya Pradesh to Amethi where I found the girl's house locked. Local villagers were tight-lipped about the whereabouts of the family."

He has, therefore, sought the intervention of the Allahabad high court "to issue a writ of Habeas Corpus to Rahul Gandhi to produce the missing girl Sukanya, her father Balram Singh and mother Savitri Singh."
While issuing the notice, a single judge bench comprising Justice SN Shukla did not fix any date for hearing the case, the petitioner's advocate Surya Mani Raikwar told rediff.com
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं


जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं

मनमोहन सिंह का दूसरा प्रेस कांफ्रेंस. महान संपादक मंडल वहाँ उपस्थित था, वैसे तो उसका धर्म प्रश्न रुपी रसायन से सियार के पूँछ का रंग उतारकर जनता के सामने लाना था लेकिन अपने चरित्र और स्वाभाव के अनुसार इन लोगो ने सियार के रंग को और पक्का करने की असफल कोशिश की और मीडिया तो खैर कांग्रेस की प्रवक्ता हीं है. कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कह सकता है कि जब भी राहुल चाहें, वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे. वह कैसे भूल सकते हैं कि वे जनता के द्वारा नियुक्त कि गए प्रधानमंत्री हैं न कि रोम वाली गोरी मैडम के द्वारा. यही वो सवाल है जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं.
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव के पश्चात नहीं हुआ है बल्कि यह चुनाव पूर्व गठबंधन है. अर्थात मनमोहन सिंह जनता के पास जनादेश मांगने करूणानिधि को लेकर हीं गए थे. और उन्हें पूर्ण बहुमत मिला था. फिर यह रोना क्यों कि गठबंधन की सरकार है इसलिए देश लुटाने कि स्वतंत्रता है? 2004 के कांग्रेस-डीएमके की डील को मनमोहन सिंह ने हीं अंतिम रूप दिया था और एक तरह से वे इस बेमेल समझौते के आर्किटेक्ट थे. बेमेल इसलिए कि इन्द्र कुमार गुजराल कि शिशु सरकार इसलिए गयी कि डीएमके के नेताओं पर राजिव गाँधी के हत्या की साजिश का आरोप था और डीएमके का जन्म हीं कांग्रेस के कथित उत्तर भारतीय राजनीति के विरुद्ध हुआ था.
अर्थनीति को लेकर भी मनमोहन कोई अटल सोच रखते हों ऐसा नहीं है. इंदिरा, राजीव और चंद्रशेखर के समय में वे समजवादी थे तो नरसिम्हा के दौर  में उदारवादी बने और अब सोनिया माइनो (गाँधी) के दौर में पूंजीवादी हो गए हैं.
कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई भी उचित कारण, उद्देश्य अथवा परिस्थिति नहीं नजर आता है जिसके लिए मनमोहन को ए. राजा को 1,72,000,000,00,00 रुपये लूटने कि छूट दे देनी चाहिए. आखिर मनमोहन यह कैसे भूल सकते हैं कि वे इंडिया के साथ-साथ एक ऐसे भारत के प्रधान मंत्री भी हैं जहाँ कि 70 प्रतिशत जनता, उन्ही के सरकार के आंकड़ों के अनुसार 20 रुपये प्रतिदिन के आय पर गुजारा करती है. और फिर 2G अकेला तो नहीं है उसके साथ श्री कलमाड़ी जी कॉमनवेल्थ घोटाला से लेकर मनरेगा तक में लूट भी तो शामिल हैं. और नवीनतम अलंकरण तो देवास के साथ हुआ करार है जिसमे प्रधानमंत्री सीधे तौर पर शामिल हैं.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने एक समाचार चैनल से बातचित में कहा कि प्रधानमंत्री सादगी और निश्चलता का चादर ओढ़े है ताकि इन घोटालों के दाग उनपर न पड़े. मैं प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा हीं हो, वरना जितना सरल, विनम्र और सात्विक उन्हें बताया जाता है यदि वे वैसे हीं हैं तो इश्वर हीं जानता है कि वे अमेरिका और चीन के घाघ राष्ट्रपतियों से क्या बात करते होंगे.
देश में ऐसी दुर्भाग्यजनक परिस्थिति स्वतंत्रता के पश्चात कभी नहीं आई. यहाँ तक कि चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर के ज़माने में भी नहीं. 120 करोड जनसँख्या वाला देश जैसे नेतृत्वविहीन है. कहने को एक प्रधानमंत्री तो है लेकिन उसकी जवाबदेही देश को न होकर सोनिया माइनो (गाँधी) को है. और यह स्वाभाविक हीं है सभी लोगो की जवाबदेही तो अपने नियोक्ता के प्रति हीं होती है न....तो मनमोहन की भी है.
जब राजिव गाँधी प्रधानमंत्री बने थे तो उने मिस्टर क्लीन का नाम दिया गया था लेकिन मात्र 63 करोड के बोफोर्स घोटाले में ऐसे बदनाम हुए कि भ्रष्टाचार के कारण चुनाव हारने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. और उस दौर में यह सारी सच्चाई सामने आई तो रामनाथ गोयंका जैसे साहसी अखबार मालिक और जनसत्ता के प्रभास जोशी जैसे ईमानदार संपादक/पत्रकार के कारण. स्पष्ट है, श्री लाल बहादुर शास्त्री के बाद अथवा उनसे भी अधिक ईमानदार प्रधानमंत्री होने का उनकी पार्टी का, मीडिया का और यहाँ तक कि विपक्ष का भी, दावा पूरी तरह खोखला है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इस दावे कि पोल कौन खोले?
लेकिन यहाँ तो बरखा दत्त, वीर संघवी और प्रभु चावला जैसों की बयार और बहार है जिनका पेशा हीं सत्ता कि दलाली है. ऐसे में उन्हें नंगा कौन करे जो कालिख के ऊपर झक्क खादी लगाये हैं?
यही सत्य है, सच्चाई यही है
वर्तमान पत्रकारिता का ही विकल्प देने का प्रयास विगत 10 वर्ष से चल रहा है,

एक सार्थक पहल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण संपादक तिलक 09911111611

यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

विश्व कप क्रिकेट में पहले दिन भारत ने बंगला देश को उसके गृह प्रदेश में 87 रन से पीछे छोड़ते हुए विजयी शुभारम्भ का नाद किया; सभी भारतियों को बधाई !
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

भारतीय मूल्यों की प्रसांगिकता


भारतीय मूल्यों की प्रसांगिकता 
(युग दर्पण राष्ट्रीय समाचार पत्र के अंक 16-22 फरवरी 2009 में सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित लेख, आज ब्लॉग के माध्यम पुन: प्रकाशित  )
विविधता तो भारत की विशिष्टता सदा से रही है किन्तुआज विविधता में एकता केवल एक नारा भर रह गया है!विभिन्न समुदायों में एहं व परस्पर टकराव का आधार जाति, वर्ग, लिंग,धर्म ही नहीं, पीडी की बदलती सोच मर्यादाविहीन बना विखंडन के संकेंत दे रही है! इन दिनों वेलेंतैनेडे के पक्ष विपक्ष में तथा आजादी और संस्कृति पर मोर्चे खुले हैं. वातावरण गर्मा कर गरिमा को भंग कर रहा है .
-बदलती सोच- एक पक्ष पर संस्कृति के नाम पर कानून में हाथ लेना व गुंडागर्दी का आरोप तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता के अतिक्रमण के आरोप है! दूसरे पर आरोप है अपसंस्कृति अश्लीलता व अनैतिकता फैलाने कादूसरी ओर आज फिल्म टीवी अनेक पत्र पत्रिकाओं में मजोरंजन के नाम पर कला का विकृत स्वरूप देश की युवा पीडी का ध्यान भविष्य व ज्ञानोपार्जन से भटका कर जिस विद्रूपता की ओर ले जा रहा है! पूरा परिवार एक साथ देख नहीं सकता!
   घर से पढ़ने निकले 15-25 वर्ष के युवा इस उतेजनापूर्ण मनोरंज के प्रभाव से सार्वजनिक स्थानों (पार्को) में अर्धनग्न अवस्था व आपतिजनक मुद्रा में संलिप्त दिखाई देते हैं! जिससे वहां की शुद्ध वायु पाना तो दूर (जिसके लिए पार्क बने हैं) बच्चों के साथ पार्क में जाना संभव नहीं! फिर अविवाहित माँ बनना व अवैध गर्भाधान तक सामान्य बात होती जा रही है! हमारें पहिये संविधान और समाज की धुरियों पर टिके हैं तो इन्ही के सन्दर्भ के माध्यम स्तिथि का निष्पक्ष विवेचन करने का प्रयास करते हैं!
   विगत 6 दशक से इस देश में अंग्रजो के दासत्व से मुक्ति के पश्चात् इस समाज को खड़े होने के जो अवसर पहले नहीं मिल पा रहे थे मिलने लगे, इस पर प्रगतिशीलता और विकास के आधुनिक मार्ग पर चलने का नारा समाज को ग्राह्य लगना स्वाभाविक है! किन्तु दुर्भाग्य से आधुनिकता के नाम पर पश्चिम की अंधी दौड़ व प्रगतिशीलता के नाम पर "हर उस परम्परा का" विरोध व कीचड़ उछाला जाने लगा, जिससे इस देश को उन "मूल्यों आदर्शों संस्कारों मान्यताओं व परम्पराओं से पोषण उर्जा व संबल" प्राप्त होता रहा है! जिन्हें युगों युगों से हमने पाल पोस कर संवर्धन किया व परखा है तथा संपूर्ण विश्व ने जिसके कारण हमें विश्व गुरु माना है! वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर जिसने विश्व को एक कल्याणकारी मार्ग दिया है! विश्व के सर्वश्रेष्ट आदर्शो मूल्यों व संस्कारों की परम्पराओं को पश्चिम की नवोदित संस्कृति के प्रदूषित हवा के झोकों से संक्रमित होने से बचाना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं ठहराया जा सकता
सहिष्णुता नैसर्गिक गुण- क्या हमने कभी समझने का प्रयास किया कि आजादी के पश्चात् जब मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बना, तो हिन्दू बाहुल्य भारत हिन्दवी गणराज्य की जगह धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त गणराज्य क्यों बना? यहाँ का बहुसंख्यक समाज स्वाभाव से सदा ही धार्मिक स्वतंत्रता व सहिष्णुता के नैसर्गिक गुणों से युक्त रहा है! धर्म के प्रति जितनी गहरी आस्था विभिन्न पंथों के प्रति उतनी अधिक सहिष्णुता का व्यवहार उतना ही अधिक निर्मल स्वभाव हमें विरासत में मिला है! विश्व कल्याण व समानता का अधिकार हमारी परम्परा का अंग रही है! उस निर्मल स्वभाव के कारण सेकुलर राज्य का जो पहाडा पडाया गया उसे स्वीकार कर लिया!
   60 वर्ष पूर्व उस पीडी के लोग जानते हैं, सामान्य भारतीय (मूल हिन्दू) स्वाभाव सदा ही निर्मल था! वे यह भी जानते हैं कि विश्व कल्याण व समानता के अधिकार दूसरो को देने में सकोच न करने वाले उस समाज को 60 वर्ष में किस प्रकार छला गया? उसका परिणाम भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है! हम कभी हिप्पिवाद, कभी आधुनिकता के नाम खुलेपन (अनैतिकता) के द्वार खोल देते हैं! अब स्थिति ये है कि आज ये देश मूल्यहीनता, अनैतिकता, अपसंस्कारों, अपराधों व विषमताओं सहित;अनेकों व्याधियों, समस्याओं व चुनोतियों के अनंत अंधकार में छटपटा रहा है? उस तड़प को कोई देशभक्त ही समझ सकता है! किन्तु देश की अस्मित के शत्रुओं के प्रति नम्रता का रुझान रखने वाले देश के कर्णधार इस पीढा का अनुभव करने में असमर्थ दिखते हैं!
 निष्ठा में विकार- आजादी की लड़ाई में हिन्दू मुसलिम सभी वन्दे मातरम का नारा लगाते, उससे ऊर्जा पाते थे. उसमे वे भी थे जो देश बांटकर उधर चले गए, तो फिर इधर के मुसलमान वन्देमातरम विरोधी कैसे हो सकते थे ? आजादी के पश्चात अनेक वर्षो तक रेडियो टीवी पर एक समय राष्ट्रगीत, एक समय राष्ट्रगान होता था! इस सेकुलर देश के, स्वयं को "हिन्दू बाई एक्सिडेंट" कहने वाले प्रथम प्रधानमंत्री से दूसरे व तीसरे प्रधानमंत्री तक के काल में इस देश में वन्दे मातरम किसी कोसांप्रदायिक नहीं लगा, फिर इन फतवों का कारण ?
  इस देश की मिटटी के प्रति समपर्ण फिर कैसे कुछ लोगो को सांप्रदायिक लगने लगा? वन्देमातरम हटाने की कुत्सित चालों से किसने अपने घटियापन का प्रमाण दिया? उस समय अपराधिक चुपपी लगाने वालो को, क्यों हिन्दुत्व का समर्थन करने वालों से मानवाधिकार, लोकतंत्र व सेकुलरवाद संकट में दिखाई देने लगता है? 
हिन्दुत्व के प्रति तिरस्कार, कैसा सेकुलरवाद है?  जब कोई जेहाद या अन्य किसी नाम से मानवता के प्रति गहनतम अपराध करता है, तब भी मानवाधिकार कुमभकरनी निद्रा से नहीं जागता? जब हिन्दू समाज में आस्था रखने वालों की आस्था पर प्रहार होता तब भी सता के मद में मदमस्त रहने वाले, कैसे, अनायास; हिन्दुत्व की रक्षा की आवाज सुनकर(भयभीत) तुरंत जाग जाते हैं? किन्तु उसके समर्थन में नहीं; भारतीय संस्कृति व हिन्दुत्व की आवाज उठाने वालों को खलनायक व अपराधी बताने वाले शब्द बाणों से चहुँ ओर से प्रहार शुरू कर देते हैं!
   अभी कुछ दिन पूर्व मंगलूर में पब की एक घटना पर एक पक्षिय वक्तवयो, कटाक्षों, से उन्हें कहीं हिन्दुत्व का ठेकदार, कहीं संस्कृती का ठेकदार का रूप में, फांसीवादी असहिष्णु व गुंडा जैसे शब्दों से अलंकृत किया गया! इसलिए कि उन्हें पब में युवा युवतियों का मद्यपान व अश्लील हरकतों पर आपति थी ? संभव है, इस पर दूसरे पक्ष ने (स्पष्ट:योवन व शराब की मस्ती का प्रकोप में) उतेजनापूर्ण प्रतिकार भी किया होगा? परिणामत दोनों पक्षों में हाथापाई? ताली दोनों हाथो से बजी होगी? एक को दोषी 
मान व दूसरे का पक्ष लेना क्या न्यायसंगत है?    जिसअपरिपक्व आयु के बच्चों को कानून नौकरी, सम्पति, मतदान व विवाह का अधिकार नहीं देता; क्योंकि अपरिपक्व निर्णय घातक हो सकते हैं; आकर्षण को ही प्रेम समझने कि नादानी उनके जीवन को अंधकारमय बना सकती है! उन्हें आयु के उस सर्वधिक संवेदनशील मोड़ पर क्या दिशा दे रहें हैं, हम लोग? जिस लोकतंत्र ने आधुनिकाओं को अपने ढंग से जीने का अधिकार दिया है, उसी लोकतंत्र ने इस देश की संस्कृति व परम्पराओं के दिवानो को उस कि रक्षा के लिये विरोध करने का अधिकार भी दिया है! माना उन्हें जबरदस्ती का अधिकार नहीं है तो तुम्हे समाज के बीच नैतिक, मान्यताओं, मूल्यों को खंडित करने का अधिकार किसने दिया? किसी की आस्था व भावनायों को ठेस पहुंचाने की आजादी, कौन सा सात्विक कार्य है?
गाँधी दर्शन- जिस गाँधी को इस देश की आजादी का पूरा श्रेय देकर व जिसके नाम से 60 वर्षों से उसके कथित वारिस इस देश का सता सुख भोग रहें है, उसकी बात तो मानेगे! उसने स्पष्ट कहा था 'आपको ऊपर से ठीक दिखने वाली इस दलील के भुलावे में नहीं आना चाहिय कि शराब बंदी जोर जबरदस्ती के आधार पर नहीं होनी चाहिये; और जो लोग शराब पीना चाहते हैं, उन्हें इसकी सुविधा मिलनी ही चाहिये! हम वैश्याल्यो को अपना व्यवसाय चलाने की अनुमति नहीं देते! इसी तरह हम चोरो को अपनी चोरी की प्रवृति पूरी करने की सुविधाए नहीं देते! मैं शराब को चोरी ओर व्यभिचार दोनों से ज्यादा निन्दनीय मानता हूँ!'
   जब इस बुराई को रोकने का प्रयास किया गया तो हाथापाई होने पर जैसी प्रतिक्रिया दिखाई जा रही है, वैसी उस बुराई को रोकने में क्यों नहीं दिखाई गयीइस बुराई को रोकने का प्रयास करने पर आज गाँधी को भी ये आधुनिकतावादी इसी आधार पर प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी व फासिस्ट घोषित कर देते?
   इस मदिरापान से विश्व मैं मार्ग दुर्घटनाएँ होती हैं! मदिरापान का दुष्परिनाम तो महिलाओं को ही सर्वाधिक झेलना पड़ता है! इसी कारण महिलाएं इन दुकानों का प्रबल विरोध भी करती हैं! किन्तु जब प्रतिरोध भारतीय संस्कृति के समर्थको ने किया है तो उसमें गतिरोध पैदा करने की संकुचित व विकृत मानसिकता, हमे अपसंस्कृति व अनुचित के पक्ष में खड़ा कर, अनिष्ट की आशंका खड़ी करती है ??
समस्या व परिणाम- किन्तु हमारे प्रगतिशील, आधुनिकता के पाश्चात्यानुगामी गोरो की काली संताने अपने काले कर्मो को घर की चारदीवारी में नहीं पशुवत बीच सड़क करने के हठ को, क्यों अपना अधिकार समझते हैं? पूरे प्रकरण को हाथापाई के अपराध पर केन्द्रित कर, हिन्दू विरोधी प्रलाप करने वाले, क्यों सभ्य समाज में सामाजिक व नैतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाने व अपसंस्कृति फैलाने के मंसूबों का समर्थन करने में संकोच नहीं करते ? फिर उनके साथ में मंगलूर जैसी घटना होने पर सभी कथित मानवतावादी उनके समर्थन में हिन्दुत्व को गाली देकर क्या यही प्रमाण देना चाहते हैं: कि १) भारत में आजादी का पश्चात मैकाले के सपनो को पहले से भी तीर्वता से पूरा किया जा सकता है?
   २) जिस संस्कृति को सहस्त्र वर्ष के अन्धकार युग में भी शत्रुओ द्वारा नहीं मिटाया जा सका व आजादी के संघर्ष में प्रेरण हेतु देश के दीवाने गाते थे "यूनान मिश्र रोमा सब मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि अब तब बाकि निशान हमारा", आजाद भारत में उसके इस गौरव को खंडित करने व उसे ही दुर्लक्ष्य करने की आजादी, इस देश के शत्रुओं को उपलब्ध हो? क्या लोकतंत्र, समानता, सहिष्णुता के नाम पर ये छूट हमारी अस्मिता से खिलवार नहीं??
   केवल सता में बने रहना या सीमा की अधूरी,अनिश्चित सुरक्षा ही राष्ट्रिय अस्मिता नहीं है! जिस देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है, रोम व यूनान की भांति मिट जाता है! हमारी तो सीमायें भी देश के शत्रुओं के लिये खुली क्यों हैं? हमारे देश के कुछ भागो पर ३ पडोसी देश अपना अधिकार कैसे समझते हैं? वहां से कुछ लोग कैसे हमारी छाती पर प्रहार कर चले जाते हैं? हम चिल्लाते रह जाते हैं?   देश की संस्कृति मूल्यों मान्यताओ सहित इतिहास को तोड मरोड कर हमारे गौरव को धवंस्त किया जाता है! सरकार की ओर से उसे बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता! क्योंकि हम धर्म निरपक्ष है? फिर, कोई और बचाने का प्रयास करे तो उसे कानून हाथ में लेने का अपराध माना जाता है? इस देश के मूल्यों आदर्शो की रक्षा न करेंगे न करने देंगे? फिर भी हम कहते हैं कि सब धर्मावलम्बीयों को अपने धर्म का पालन करने, उसकी रक्षा करनें का अधिकार है, अपनी बात कहने का अधिकार है? कैसा कानून कैसा अधिकार व कैसी ये सरकार? 
  जरा सोचे- व्यवहार में देखे तो भारत व भारतीयता के उन तत्वों को दुर्लक्ष किया जाता है, जिनका संबध भारतीय संस्कृति, आदर्शो, मूल्यों व परम्पराओं से है! क्योंकि वे हिंदुत्व या सनातन परम्परा से जुड़े हैं? उसके बारे में भ्रम फैलाना, अपमानित व तिरस्कृत करना, हमारा सेकुलर सिद्ध अधिकार है?
   इस अधिकार का पालन हर स्तर पर होना ही चाहिये? किन्तु उन मूल्यों की स्पर्धा में जो भी आए उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया जायेगा? हिन्दू हो तो, इस सब को सहन भी करो और असहिष्णु भी कहलाओ? सहस्त्र वर्ष के अंधकार में भी संस्कारो की रक्षा करने में सफल विश्व गुरु, दिन निकला तो एक शतक भी नहीं लगा पाया और मिट गया ! अगली पीडी की वसीयत यही लिखेंगे हम लोग?
   इस विडंबना व विलक्षण तंत्र के कारण हम संस्कृतिविहीन व अपसंस्कृति के अभिशप्त चेहरे को दर्पण में निहारे तो कैसे पहचानेगे? क्या परिचय होगा हमारा?..
  तिलक राज रेलन संपादक युग दर्पण (9911111611), (9540007993).
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

'एकात्म मानववाद' के मंत्रद्रष्टा',

'एकात्म मानववाद' के मंत्रद्रष्टा', पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, महान चिंतक और संगठक थे व भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानव दर्शन जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी। नितांत सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति उपाध्याय जी की राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी गहरी अभिरुचि थी। केवल एक बैठक में ही उन्होंने 'चंद्रगुप्त नाटक' लिख डाला था। हिंदी और अंग्रेजी के उनके लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे।
चित्र:Pt. Deendayal upadhyay.pngजीवन परिचय:- दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चंद्रभान में हुआ था। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। माता रामप्यारी धार्मिक वृत्ति की थीं। रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। थोड़े समय बाद ही दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल धनकिया में स्टेशन मास्टर थे। मामा का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ खाते-खेलते बड़े हुए। 3 वर्ष की निर्बोध आयु में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये । पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक रुग्न रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया।
8 अगस्त सन् 1924 को रामप्यारी बच्चों को अकेला छोड़ ईश्वर को प्यारी हो गयीं। 7 वर्ष की कोमल आयु में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग शिक्षा प्राप्त की। बी.एस-सी., बी.टी. करने के बाद उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गए थे। अत: कालेज छोड़ने के तुरंत बाद वे उक्त संस्था के प्रचारक बना दिए गए और एकनिष्ठ भाव से अपने दल का संगठन कार्य करने लगे। वर्ष 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके मंत्री बनाए गए। दो वर्ष बाद 1953 में उपाध्याय जी अखिल भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए और लगभग 15 वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसंबर, 1967) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी, 1968 की रात में रेलयात्रा करते उनकी हत्या कर दी गई। वे मूलत: एक चिंतक, सृजनशील विचारक, प्रभावी लेखक और कुशल संगठनकर्ता व दीनदयालजी भारतीय राजनीतिक चिंतन में एक नए विकल्प 'एकात्म मानववाद' के मंत्रद्रष्टा थे।
उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्ममानव दर्शन जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी। प्रस्तुत है उनके विचारों पर आधारित एक प्रेरणास्पद लेख :
जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष पं. दीनदयाल उपाध्याय का स्थान भारतीय चिंतन परंपरा में काफी महत्वपूर्ण है। भारतीय चिंतन परंपरा में उनकी महत्ता इसलिए है कि उन्होंने पश्चिम के खंडित दर्शन के स्थान पर भारतीय जीवन पध्दति में समाहित एकात्म मानववाद के दर्शन को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया है।
 पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विकास की अवधारणा पश्चिमी अवधारणा से बिलकुल विपरीत है। इतना तो सब मानते हैं कि मानव जीवन के समस्त क्रियाकलापों का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है और मानव के यह क्रियाकलाप ही उसके विकास का रास्ता है। पश्चिम के लोग और शायद हमारे देश के नीति निर्धारक भी यह मानते हैं कि जहां ज्यादा उपभोग होते हैं वहां ज्यादा सुख होता है और वही विकास की प्रतीक होता है। परंतु पंडित दीनदयाल उपाध्याय उपभोग या सुख को विकास का पर्याय नहीं मानते थे। वे इसके लिए एक अत्यंत सुंदर उदाहरण दिया करते थे। वह कहते थे कि व्यक्ति को गुलाब जामुन खाना अच्छा लगता है। व्यक्ति को लगता है कि गुलाब जामुन खाने से सुख प्राप्त हो रहा है। किन्तु मान लीजिये कि जब व्यक्ति गुलाब जामुन खा रहा हो तो उसके पास उसके किसी परिजन के देहांत की सुचना आ जाए। तब व्यक्ति भी वही रहेगा और उसके हाथ में वही गुलाब जामुन रहेगा फिर भी सुख उसके पास नहीं होगा। यदि गुलाब जामुन में ही सुख है तो फिर उस समय भी व्यक्ति को सुख प्राप्त होना चाहिए था। किन्तु ऐसा होता नहीं है।
 पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि मन की स्थिति ही सुख की अवधारक है। मन पर नियंत्रण ही वास्तविक विकास है। वह स्पष्ट तौर पर कहते थे कि उपभोग के विकास का रास्ता राक्षसत्व की और जाता है और मन को नियंत्रित करने का विकास का रास्ता देवत्व की ओर जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस देवत्व के रास्ते का अनुसंधान कर रहे थे । परंतु यह ठीक है कि यह नया रास्ता नहीं था। भारतीय साधु संत तथा सामान्य जन हजारों-हजारों वर्षों से इसकी साधना कर रहे थे । महात्मा गांधी भी एक सीमा तक उपभोग के विरुद्ध थे ।
मनुष्य की जितनी भौतिक आवश्यकताएं हैं उनकी पूर्ति का महत्व को भारतीय चिंतन ने स्वीकार किया है, परंतु उसे सर्वस्व नहीं माना। मनुष्य के शरीर, मन, बुध्दि और आत्मा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए और उसकी इच्छाओं व कामनाओं की संतुष्टि और उसके सर्वांगीण विकास के लिए भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ चतुष्टय की जो अवधारणा है पंडित दीनदयाल उपाध्याय उसे आज के युग में भारत के समग्र विकास का मूल आधार मानते थे । पुरुषार्थ के यह चार अवधारणाएं है- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। पुरुषार्थ का अर्थ है उन कर्मों से है जिनसे पुरुषत्व र्साथक हो। धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की कामना मनुष्य में स्वाभविक होती है और उनके पालन से उसको आनंद प्राप्त होता है।
 मनुष्य की भौतिक आवश्यकता व अन्य आवश्यकताओं को पश्चिम की दृष्टि में सुख माना गया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार अर्थ और काम पर धर्म का नियंत्रण रखना आवश्यक है और धर्म के नियंत्रण से ही मोक्ष पुरुषार्थ प्राप्त हो सकता है। यद्यपि भारतीय संस्कृति में मोक्ष को परम पुरुषार्थ माना गया है. तो भी अकेले उसके लिए प्रयत्न करने से मनुष्य का कल्याण नहीं होता। वास्तव में अन्य पुरुषार्थ की अवहेलना करने वाला कभी मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता।
 इसी प्रकार धर्म आधारभूत पुरुषार्थ है किन्तु 3 अन्य पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक व पोषक हैं। यदि व्यापार भी करना है तो मनुष्य को सदाचरण, संयम, त्याग, तपस्या, अक्रोध, क्षमा, धृति, सत्य आदि धर्म के विभिन्न लक्षणों का निर्वाह करना पडेगा। बिना इन गुणों के पैसा कमाया नहीं जा सकता। व्यापार करने वाले पश्चिम के लोगों ने कहा कि 'आनेस्टी इज द बेस्ट पालीसी' अर्थात सत्य निष्ठा ही श्रेष्ठ नीति है। भारतीय चिंतन के अनुसार आनेस्टी इज नट ए पालीसी बट प्रिसिंपल अर्थात सत्यनिष्ठा हमारे लिए नीति नहीं है बल्कि सिध्दांत है। यही धर्म है और अर्थ और काम का पुरुषार्थ धर्म के आधार पर चलता है। राज्य का आधार भी हमने धर्म को ही माना है। अकेली दंडनीति राज्य को नहीं चला सकती। समाज में धर्म न हो तो दंड नहीं टिकेगा। काम पुरुषार्थ भी धर्म के सहारे सधता है। भोजन उपलब्ध होने पर कब, कहां, कितना कैसा उपयोग हो यह धर्म तय करेगा। अन्यथा रोगी यदि स्वस्थ्य व्यक्ति का भोजन करेगा स्वस्थ व्यक्ति ने रोगी का भोजन किया तो दोनों का अकल्याण होगा। मनुष्य की मनमानी रोकने को रोकने के लिए धर्म सहायक होता है और धर्म का इन अर्थ और काम पर नियंत्रण को सही माना गया है
 पंडित दीनदयाल जी के अनुसार धर्म महत्वपूर्ण है परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि अर्थ के अभाव में धर्म टिक नहीं पाता है। एक सुभाषित आता है- बुभुक्षित: किं न करोति पापं, क्षीणा जना: निष्करुणा: भवन्ति। अर्थात भूखा सब पाप कर सकता है। विश्वामित्र जैसे ऋषि ने भी भूख से पीडित हो कर शरीर धारण करने के लिए चांडाल के घर में चोरी कर के कुत्ते का जूठा मांस खा लिया था। हमारे यहां आदेश में कहा गया है कि अर्थ का अभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि वह धर्म का द्योतक है। इसी तरह दंडनीति का अभाव अर्थात अराजकता भी धर्म के लिए हानिकारक है ।
 पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार अर्थ का अभाव के समान अर्थ का प्रभाव भी धर्म का घातक होता है। जब व्यक्ति और समाज में अर्थ साधन न होकर साध्य बन जाएं तथा जीवन के सभी विभुतियां अर्थ से ही प्राप्त हों तो अर्थ का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है और अर्थ संचय के लिए व्यक्ति नानाविध पाप करता है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास अधिक धन हो तो उसके विलासी बन जाने की अधिक संभावना है ।
पश्चिम में व्यक्ति की जीवन को टुकडे-टुकडे में विचार किया जबकि भारतीय चिंतन में व्यक्ति के जीवन का पूर्णता के साथ संकलित विचार किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार हमारे चिंतन में व्यक्ति के शरीर, मन बुध्दि और आत्मा सभी का विकास करने का उद्देश्य रखा है। उसकी सभी भूख मिटाने की व्यवस्था है। किन्तु यह ध्यान रखा कि एक भूख को मिटाने के प्रयत्न में दूसरी भूख न पैदा कर दें और दूसरे के मिटाने का मार्ग न बंद कर दें। इसलिए चारों पुरुषार्थों को संकलित विचार किया गया है। यह पूर्ण मानव तथा एकात्ममानव की कल्पना है जो हमारे आराध्य तथा आराधना का साधन दोंनों ही हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पश्चिम के खंडित अवधारणा के विपरीत एकात्म मानव की अवधारणा पर जोर दिया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि उपाध्याय जी के इस चिंतन को व्यावहरिक स्तर पर उतारने का प्रयास किया जाए ।
 (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं! यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक

बुधवार, 26 जनवरी 2011

तिरंगा यात्रा से कश्मीर चलने का आह्वान

तिरंगा यात्रा से कश्मीर चलने का आह्वानविदिशा। भाजयुमो ने बुधवार को शहर में तिरंगा यात्रा निकालकर युवाओं से कश्मीर चलकर तिरंगा फहराने का आव्हान किया। रामलीला चौराहे से प्रारंभ इस जिला स्तरीय तिरंगा यात्रा मे सबसे आगे तिरंगा रथ पर स्वामी विवेकानंद का चित्र था और तिरंगा लहरा रहा था। उसके पीछे भाजयुमो कार्यकर्ता दोपहिया वाहनों पर कश्मीर से संबंधित नारे लगाते हुए चल रहे थे।तिरंगा यात्रा तोपपुरा, बजरिया, लोहा बाजार, बड़ा बाजार, तिलक चौक होती हुई माधवगंज चौक में समाप्त हुई। पूर्व विधायक गुरूचरण सिंह ने कहा कि भाजयुमो द्वारा राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा करने तथा कश्मीर के अलगाववादियों को सबक सिखाने के उद्देश्य से 26 जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया जाए इसके लिए देशभर में राष्ट्रीय एकता यात्रा निकाली जा रही है। उन्होंने युवाओं से इस यात्रा को सफल बनाने का आव्हान किया। सभा को मोर्चा ललित शर्मा के अलावा भगवानदास अहिरवार, रोहित भावसार, राजेंद्र जैन ने भी संबोधित किया। संचालन मोर्चा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य प्रियंक कानूनगो ने किया।
भाजपा की तिरंगा यात्रा पर आतंकी भूत !
नई दिल्ली। कोलकता से शुरू हुई भाजपा की तिरंगा यात्रा सोमवार यानी 24 जनवरी को पठानकोट पहुंच गयी और 25 जनवरी को जम्मू पहुंच जायेगी। हो सकता है कि तिरंगा फहराने पर अड़ी हुई भाजपा को रोकने में पूरी तरह से नाकाम हो चुकी सरकार खुफिया एजेसिंयो से आतंकी हमले की बात कहवा कर इस हथकंडे से भाजपा के मंसूबों पर रोक लगाना चाह रही हो। आपको बता दें कि इस समय कश्मीर पूरी तरह से छावनी म बदल चुका है। चप्पे-चप्पे पर आपको सुरक्षाकर्मी दिखायी पड़ेगें। राज्य में प्रवेश के सारे रास्ते सिल कर दिये गये हैं, साथ ही रेल यात्रियों की गहन छानबीन की जा रही है, इतना ही नहीं दूसरे राज्यों से आने वाली ट्रेनों के रास्ते भी बदले जा रहे हैं।
लाल चौक पर एसपीजी का कड़ा पहराश्रीनगर। भाजपा की तिरंगा यात्रा के कारण बुधवार को अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार अनुराग ठाकुर सहित कई भाजपा नेताओं को बंदी बना लिया गया था। भाजपा कार्याकर्ताओं मे इस बात पर रोष और तनाव को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने देर रात भाजपा नेताओं को रिहा करने के आदेश दे भाजपा नेताओं अरुण जेटली समेत बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल को जम्मू या श्रीनगर में मुख्य गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने का नाटक किया।
 कोलकाता से 13 जनवरी को शुरू हुई भाजपा की यह यात्रा श्रीनगर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर संपन्न होनी थी। कठुआ के लखनपुर क्षेत्र में गिरफ्तार किए गए ये नेता गणतंत्र दिवस के अवसर पर श्रीनगर के लाल चौक में झंडा फ हराने के लिए सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ पठानकोट से रावी नदी का पुल पार कर जम्मू के लखनपुर क्षेत्र में घुसे थे। इन्हें श्रीनगर जाने से रोकने के लिए प्रशासन ने राज्य में धारा 144 लागू की हुई थी।
संभावित तनाव को दखते हुए राज्य सरकार ने लाल चौक पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। लाल चौक के बाहरी क्षेत्र में राज्य पुलिस के जवानों ने कड़ा पहरा देना शुरू कर दिया है। जबकि लाल चौक के बीचों बीच स्पेशल प्राटैक्शन ग्रुप की व्यवस्था है जिससे परिंदा भी पर न मार सके। जब तिरंगा जलाया जाता है, आतंकियों को रोकने के लिए ऐसी व्यवस्था कभी नहीं की जाती
उमर अब्दुल्ला ने बीजेपी नेता को राज्य में होने वाले जम्मू या श्रीनगर में होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में से किसी में भी शामिल होने का न्योता दिया। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मंगलवार को भाजपा  की राष्ट्रीय एकता यात्रा कठुआ में रोक दी थी और भाजपा के शीर्ष नेताओं को 500 कार्यकर्ताओं के साथ जम्मू में घुसने के प्रयास में बंदी बना लिया था। उधर अभी भी धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में लखनपुर पर रोके गए भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को हिरासयत में लिया गया है।
बंदी नेताओं में संसद के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, भाजपा के उपाध्यक्ष शांता कुमार, महासचिव अनंत कुमार, भाजपा युवा मोर्चा के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर भी शामिल थे। इन नेताओं को उसी ऐतिहासिक स्थान से बंदी बनाया गया जहां से 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को  बंदी बनाया गया था। 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
भारत का गणतंत्र दिवस शक्ति प्रदर्शन 
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नई दिल्ली।। गणतंत्र दिवस की परेड में भारतीय संस्कृति की झलक तो दिखी ही साथ ही भारत ने अपनी अद्भुत सैन्य क्षमता का भी प्रदर्शन किया ।
विश्व भर में अपनी प्रहार क्षमता के लिए चर्चित टी-90 (भीष्म) टैंकों का दस्ता जैसे ही राजपथ से गुजरा धरती जैसे मानो हिलने सी लगी। 5 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम इस अत्यंत शक्तिशाली टैंक को देखकर वहां उपस्थित  लोग रोमांचित हो उठे।
यह टैंक 'थर्मल इमेजिंग' शक्ति की सहायता से रात में भी 4 किलोमीटर तक मार कर सकता है। 60 किलोमीटर की गति  से चलने में सक्षम इस टी-90 भीष्म टैंक में परमाणु, जैविक और रासायनिक हमले से बचाव के उपकरण लगे हुए हैं।
भीष्म टैंकों की गड़गड़ाहट के बाद लोग पहली सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस की प्रेषण प्रणाली देख पाए । सभी स्थिति में प्रभावी भारत और रूसी सहयोग से निर्मित यह क्रूज मिसाइल किसी भी प्रेषण स्थल जैसे भूमि, समुद्र, समुद्र के अंदर से हवा में छोड़ी जा सकती है। ।
इसके बाद 'विजयी भव' के उद्घोष के साथ दुश्मन सेना पर भारी गोलीबारी कर तांडव मचाने वाली मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर प्रणाली 'पिनीका' और इसके बाद परेड में शत्रु सेना पर लंबी दूरी तक नजर रखने में सक्षम टैक्टिनकल कंट्रोल रडार-रिपोर्टर का नंबर आया। 2003 में सेना में शामिल किए गए इस राडार से 40 हजार मीटर तक निगरानी की जा सकती है
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक