समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता भले ही आज समय की मांग है, एक सूत्र में पिरोने की।
किन्तु इसमें समस्या यह है कि विगत में स्वतंत्रता के आरम्भ से ही समाज को
एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करने के स्थान पर बहुलता वादी समाज के नाम पर
संविधान को खिलोने की भाँति प्रस्तुत कर खिलवाड़ करने का चलन चला गया।
इसी कारण भारत जैसे बहुलता वादी देश में समान नागरिक संहिता लागू करना
सरल भी नहीं है।
कई नस्लीय जनजातियां, विभिन्न संप्रदाय, जातियां और समुदाय हैं। हिंदुओं के
अंदर भी कई भांति भांति की स्थानीय प्रकार की पारिस्थितिक प्रथाएं चालू हैं। इन
सब के बाद भी संविधान निर्माताओं ने हिंदुओं पर समान कानून बनाए। विभिन्न
प्रथाओं के बाद भी मूल रूप से पूरा समाज ऐसे जुड़ा है जैसे शरीर के भिन्न भिन्न
अंग प्रत्यंग एक ही शरीर के विभिन्न भाग हैं।
समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव पर जन सुनवाई और सर्वदलीय बैठक में
राजनैतिक दलों का समर्थन ही आगे जाकर आम सहमति दिला सकेगा। इस मुद्दे पर
आगे का एकमात्र मार्ग सर्वसम्मति से ही स्थापित होना है। समझदारी है कि पहले
विधि आयोग इस पर भी ध्यान कर जन सुनवाई में सभी समूहों से चर्चा करे ताकि
विधि आयोग को साझा प्रस्ताव के साथ सामने आने को मिले।
यह पग इस दृष्टी से महत्त्व का है कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा था कि वह
मौखिक तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता पर किसी निर्णय से पूर्व व्यापक चर्चा
पसंद करेगा। कई लोगों का मानना है कि मुसलमान अपनी पत्नियों को मनमाने
ढंग से तलाक देने के लिए तिहरे तलाक का दुरूपयोग करते हैं। तब इन चीजों
में सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलायी जानी चाहिए।
बात केवल तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता की ही नहीं है जैसे अपितु विविधता
भरे हिन्दू समाज होने पर भी कानून को हिंदुओं पर समान रूप से लागु किया गया,
इस पर भी वह विविधता समाप्त नहीं हो गई, अनेकता में एकता का गौरवपूर्ण पक्ष
हमारे लिए सदा के लिए प्रत्यक्ष उदहारण बनकर खड़ा है।
समान नागरिक संहिता का यही नियम मुस्लिम तथा अन्यों को भी उसी प्रकार एक
सूत्र में पूरे समाज को जोड़ कर रख सकता था। किन्तु विविधता बनाए रखने के नाम
पर जिस प्रकार हिन्दू कानून मुस्लिम कानून बनाए गए.उसने एकता के बदले अलगाव
का भाव ही बनाया और राजनैतिक तुष्टिकरण का मार्ग खोलकर सामाजिक विखंडन
का मार्ग प्रशस्त किया। आज यह समस्या जटिल रोग होकर असाध्य लगता है।
समय पर उपचार किया जाता तो उचित था किन्तु विलम्ब से सही, शुभस्य् शीघ्रम।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
http://samaajdarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post_15.html
समान नागरिक संहिता भले ही आज समय की मांग है, एक सूत्र में पिरोने की।
किन्तु इसमें समस्या यह है कि विगत में स्वतंत्रता के आरम्भ से ही समाज को
एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करने के स्थान पर बहुलता वादी समाज के नाम पर
संविधान को खिलोने की भाँति प्रस्तुत कर खिलवाड़ करने का चलन चला गया।
इसी कारण भारत जैसे बहुलता वादी देश में समान नागरिक संहिता लागू करना
सरल भी नहीं है।
कई नस्लीय जनजातियां, विभिन्न संप्रदाय, जातियां और समुदाय हैं। हिंदुओं के
अंदर भी कई भांति भांति की स्थानीय प्रकार की पारिस्थितिक प्रथाएं चालू हैं। इन
सब के बाद भी संविधान निर्माताओं ने हिंदुओं पर समान कानून बनाए। विभिन्न
प्रथाओं के बाद भी मूल रूप से पूरा समाज ऐसे जुड़ा है जैसे शरीर के भिन्न भिन्न
अंग प्रत्यंग एक ही शरीर के विभिन्न भाग हैं।
समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव पर जन सुनवाई और सर्वदलीय बैठक में
राजनैतिक दलों का समर्थन ही आगे जाकर आम सहमति दिला सकेगा। इस मुद्दे पर
आगे का एकमात्र मार्ग सर्वसम्मति से ही स्थापित होना है। समझदारी है कि पहले
विधि आयोग इस पर भी ध्यान कर जन सुनवाई में सभी समूहों से चर्चा करे ताकि
विधि आयोग को साझा प्रस्ताव के साथ सामने आने को मिले।
यह पग इस दृष्टी से महत्त्व का है कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा था कि वह
मौखिक तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता पर किसी निर्णय से पूर्व व्यापक चर्चा
पसंद करेगा। कई लोगों का मानना है कि मुसलमान अपनी पत्नियों को मनमाने
ढंग से तलाक देने के लिए तिहरे तलाक का दुरूपयोग करते हैं। तब इन चीजों
में सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलायी जानी चाहिए।
बात केवल तिहरे तलाक की संवैधानिक वैधता की ही नहीं है जैसे अपितु विविधता
भरे हिन्दू समाज होने पर भी कानून को हिंदुओं पर समान रूप से लागु किया गया,
इस पर भी वह विविधता समाप्त नहीं हो गई, अनेकता में एकता का गौरवपूर्ण पक्ष
हमारे लिए सदा के लिए प्रत्यक्ष उदहारण बनकर खड़ा है।
समान नागरिक संहिता का यही नियम मुस्लिम तथा अन्यों को भी उसी प्रकार एक
सूत्र में पूरे समाज को जोड़ कर रख सकता था। किन्तु विविधता बनाए रखने के नाम
पर जिस प्रकार हिन्दू कानून मुस्लिम कानून बनाए गए.उसने एकता के बदले अलगाव
का भाव ही बनाया और राजनैतिक तुष्टिकरण का मार्ग खोलकर सामाजिक विखंडन
का मार्ग प्रशस्त किया। आज यह समस्या जटिल रोग होकर असाध्य लगता है।
समय पर उपचार किया जाता तो उचित था किन्तु विलम्ब से सही, शुभस्य् शीघ्रम।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
http://samaajdarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post_15.html
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