राष्ट्र मंडल खेल आयोजन और दिल्ली -तिलक राज रेलन आजाद
जानकारी मिली दिल्ली सरकार से,
कभी पढ़ा था हमने किसी अख़बार से,
राष्ट्र मंडल खेलों का आयोजन होगा,
दिल्ली पर 55 हज़ार करोड़ का व्यय होगा!
दिन महीने वर्ष बीत गए उस शुभ घडी की प्रतीक्षा में,
पता नहीं कौन से पाठ पढ़े थे नेताओं ने अपनी शिक्षा में,
दिल्ली का रंग रूप तो इस आयोजन की तैयारी में भी
बदल नहीं पाया, चुक गयी सारी निधी जाने किस भिक्षा में
इतनी राशी मुझे जो मिल जाती
बिजली- पानी, सड़क भी खिल जाती
दिल्ली यूँ भाग्य पर नहीं रोती
इसके ठहाकों से दुनिया हिल जाती
सारा ढांचा बदल के रख देता
दिल्ली दुल्हन बना के रख देता
देखते जिस ग़ली, सड़क की तरफ
नज़ारों पर नज़र फिसल जाती
ऐसा होना तो तब ही संभव था
बईमानी होना जहाँ असंभव था
नेता हो और बईमानी भी न करे?
ऐसा होना ही तो असंभव था!
कैसा वो करार था और कैसा वो समय होगा
देश के यश का वास्ता दिया मगर अपयश होगा
मदमस्त बेखबर से बैठे है सब क्यों 'तिलक'
यश हो अपयश किसी पे इसका असर कहाँ होगा?
सौभाग्य ऐसा नहीं है दिल्ली का
छींका*लिखा पड़ा है बिल्ली का
(छींका -मलाई की हंडिया)
छींका लिखा पड़ा है बिल्ली का
छींका लिखा.....
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