Desh Bhakti ke Geet Vedio

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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है। किन्तु प्रकृति के संसाधनों व उत्कृष्ट मानवीयशक्ति से युक्त इस राष्ट्रको काल का ग्रहण लग चुका है। जिस दिन यह ग्रहणमुक्त हो जायेगा, पुनः विश्वगुरु होगा। राष्ट्रोत्थानका यह मन्त्र पूर्ण हो। आइये, युगकी इस चुनोतीको भारतमाँ की संतान के नाते स्वीकार कर हम सभी इसमें अपना योगदान दें। निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!

स्व आंकलन:

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

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शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

सैन्य इतिहास में ये पहली बार

सैन्य इतिहास में ये पहली बार 

आय से अधिक संपत्ति: सेना के दो मेजर जनरलों के विरुद्ध 'केंअ ब्यू' जांच के आदेश 

नई दिल्ली : भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार ने आज भी प्रतिबध्दता दिखाई, जिसमे भ्रष्टाचार व आय से अधिक संपत्ति के मामले में सेना के दो मेजर जनरल के विरुद्ध केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो 'केंअ ब्यू' जांच करेगी। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने जांच का आदेश दिया है। बता दें कि यह पहला अवसर है जब सेना के दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के विरुद्ध मोदी सरकार 'केंअ ब्यू' जांच करा रही है। रक्षा मंत्रालय ने 'केंअ ब्यू' से कहा है कि वह गत वर्ष अति विशिष्ट सेवा मेडल (अविसेमे) से सम्मानित दो सेवारत मेजर जनरलों के विरुद्ध मिली उन शिकायतों के आधार पर चल- अचल   संपत्ति की जांच करे, जिनमें इन सैन्य अधिकारियों पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया गया है। रक्षा सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्रालय ने मेजर जनरल अशोक कुमार और मेजर जनरल एसएस लांबा के विरुद्ध  मिली शिकायतें 'केंअ ब्यू' को भेज दी हैं और उत्तर मांगा है। सूत्रों ने कहा कि सरकार किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार सहन नहीं करेगी। शिकायतों पर 'केंअ ब्यू' अब जाँच करेगी और मंत्रालय को रपट भेजेगी। 

दोनों वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को गत वर्ष अविसेमें से सम्मानित किया गया था। असाधारण श्रेणी की विशिष्ट सेवा को मान्यता देते हुए यह सैन्य सम्मान दिया जाता है। अनुचित व्यवहार के आरोपों के बाद मंत्रालय ने सितंबर में कुछ अधिकारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी थी। मामले की पृष्ठभूमि बताते हुए सूत्रों ने कहा कि गत वर्ष लेफ्टिनेंट जनरल के तीन खाली पदों को भरने के लिए थलसेना के विशेष पदोन्नति बोर्ड की एक बैठक में 33 अधिकारियों के नामों पर विचार किया गया था। बोर्ड की ओर से स्वीकृत किए गए कुछ नामों को रक्षा मंत्रालय को भेजा गया था। अभी, बोर्ड की बैठक के बाद कुछ अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतें सामने आई, जिनमें कुछ सोशल मीडिया में भी दर्शाई थीं। मामले का संज्ञान लेते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने स्वयं इस मामले को देखा। धर्म का आडम्बर जितना हानिकारक है उससे कहीं अधिक घातक है, धर्म से विश्वास डिगाने हेतु भ्रामक दुष्प्रचार, धर्म का नाश करके अधर्म का स्थान बनता है। 
सूत्रों ने बताया कि बाद में पाया गया कि मंत्रालय ने जिन दो अधिकारियों के विरुद्ध 'केंअ ब्यू' को लिखा है, उनमें से एक ने भ्रष्टाचार के आरोप में कुछ वर्ष पूर्व 'केंअ ब्यू' जांच का सामना किया था। सीमा सड़क संगठन की एक परियोजना में कथित भ्रष्टाचार के संबंध में इस अधिकारी के विरुद्ध जांच की गई थी। 'केंअ ब्यू' को अधिकारी पर आपराधिक वाद चलाने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं मिल सके थे। इस बीच, इस अधिकारी की पदोन्नति का समय आया और उसके विरुद्ध कोई औपचारिक कार्यवाही लंबित नहीं दर्शाई जाने से उसे अनुशासन एवं सतर्कता स्वीकृति भी मिल गई थी। 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता
व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक 

बुधवार, 27 जनवरी 2016

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा।

ये है मनोहर लाल जी का मनोहारी हरियाणा। 
Image result for manohar lal khattar in hindiहोटल के खाने का ऐसा बिल जिसे पढकर, आपके भी आंखों से भावुक आंसू आयेंगे.!


हरयाणा के एक होटेल में घटी सत्य घटना है ...!!
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रात का समय था, होटल की मेज रखा पर 
अपना खाना, एक समान्य वयस्क श्रमिक बैठा खा रहा था ..! तभी उसकी दृष्टी होटल के बाहर कडी ठण्ड में खडे छोटे से भाई बहन की जोडी पर गई ...!!
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जो दोनों बच्चों का दुखी चेहरा, 
खाने की थाली पर कातर दृष्टी से देखते बच्चे, यह बात उस व्यक्ति के ध्यान में क्षण भर में आ गयी ...!! 
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आँखों से संकेत करते दोनों बच्चों को अंदर बुलाया, बच्चे संकोच से डरते डरते ही अंदर आये,
उस समान्य श्रमिक ने दोनों बच्चों के लिए खाने की दो थाली मंगाई .....
नन्हे बच्चें, अपने नन्हे से हाथों में जो बैठ रहा था, वो फटाफट खा रहे थे ......
नन्हे बच्चों के पेट में भूख की आग बुझ रही थी ...
खाना खाने के पश्चात् उस आदमी ने बिल मंगवाया .....!!
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काउंटर पर से बिल आया, आँकड़ा देखकर वो व्यक्ति स्तब्ध, निशब्द रह गया ..!!
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जानते है, बिल कितना था ?
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उस बिल पर लिखा था "हमारे पास ऐसी कोई मशीन या फिर आँकडा नहीं, जिससे मानवता का मुल्य गिना जा सके, भगवान आपका भला करे "
...ये है मनोहर लाल जी का आज का मनोहारी हरियाणा। 
🏻 🏻मानवता को प्रणाम कहो कैसी रही 
जब देश का नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, 
उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान 
-युगदर्पण मीडिया समूह YDMS- तिलक संपादक 
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मंगलवार, 19 जनवरी 2016

महाराणा प्रताप 'वीरयोद्धा और स्वाभिमानी' नायक

महाराणा प्रताप 'वीरयोद्धा और स्वाभिमानी' नायक
स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्पवान वीर शासक एवं महान देशभक्त महाराणा प्रताप का नाम, इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है।  महाराणा प्रताप युग के महान व्यक्ति थे। ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् (9 मई )1540 को मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे ज्येष्ठ पुत्र, महाराणा प्रताप को बचपन से ही अच्छे संस्कार, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान और धर्म की रक्षा की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली।

 सादा जीवन और दयालु स्वभाव वाले महाराणा प्रताप की वीरता और स्वाभिमान तथा देशभक्ति की भावना से, अकबर भी बहुत प्रभावित हुआ था। जब मेवाङ की सत्ता राणा प्रताप ने संभाली, तब आधा मेवाड़ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये अकबर प्रयासरत था। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को चलाये रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया। जंगल-जंगल भटकते हुए भी, उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया, पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा कोष समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अतिरिक्त मुझे आपके कोष की एक पाई भी नहीं चाहिये। अकबर के अनुसार  महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुका नहीं, डरा नहीं।

महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में व्यतीत हुआ। अपनी पर्वतीय युद्ध नीति के द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार पराजय दी। यद्यपि जंगलों और पहाड़ों में रहते हुए महाराणा प्रताप को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा, किन्तु उन्होने अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा। महाराणा प्रताप के सुदृढ़ संकल्पों ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों को असफल बना दिया। उनके धैर्य और साहस का ही प्रतिफल था कि 30 वर्ष के निरंतर प्रयास के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा ‘चेतक‘ था, जिसने अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था।

 हल्दीघाटी के युद्ध में उन्हें भले ही पराजय का सामना करना पड़ा, किन्तु हल्दीघाटी के बाद अपनी शक्ति को संगठित करके शत्रु को पुनः चुनौती देना, प्रताप की युद्ध नीति का एक अंग था। महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति को पहचान कर उनके अचानक धावा बोलने की प्रक्रिया को समझा और उनकी छापामार युद्ध पद्धति से अनेक बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला था। महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतंत्रता का संघर्ष जीवनपर्यन्त जारी रखा। अपने शौर्य, उदारता तथा सदगुणों से जनसमुदाय में लोकप्रिय थे। महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होने अमरसिंह द्वारा पकड़ी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया था।

हल्दीघाटी के युद्ध में पराजय अपनी शक्ति और कौशल में कमी के कारण नहीं, अपितु राजा मानसिंह, भाई शक्ति सिंह का अहम और दुष्ट, ईर्ष्यालु भाई जगमाल की सत्तालोलुप महत्वाकांक्षा के कारण अकबर का साथ देने से हुई। 
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुणों के साथ-साथ अच्छे व्यवस्थापक की विशेषताएँ भी थी। अकबर की उच्च महत्वाकांक्षा, शासन निपुणता और असीम साधनों के बाद भी महाराणा प्रताप की अदम्य वीरता, साहस और उज्ज्वल कीर्ति को परास्त न कर सकी। अंतत: शिकार के समय लगी चोटों के कारण महारणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को चावंड में हुई।
राष्ट्रद्रोहियों को परास्त करना ही, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिससे हल्दी घाटी हमें फिर घाव न दे सके। भारत के शत्रुओं को दण्डित करने से हम सशक्त होंगे, वे क्षमा योग्य नहीं, न यह मानवता वाद। 
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मंगलवार, 12 जनवरी 2016

ज्ञानपुंज, स्वामी विवेकनन्द जी,

ज्ञानपुंज, स्वामी विवेकनन्द जी, 
 व्यक्तित्व 
उठो जागो और तब तक आगे बढ़ते रहो, जब तक भारत पुन: विश्व गुरु के आसान पर आरूढ़ न हो  जाये। शिकागो विश्व धर्म संसद में, अपने दिव्य ओजस्वी भाषण से चकित कर परतंत्र भारत को विश्व में सम्मान दिलाने वाले, स्वामी विवेकनन्द जी, सरस्वती जिनकी जिह्वा पर विराजती थी।  जन्म 13 जनवरी, 1863, तथा कम आयु में ही चमत्कारिक ज्ञान से विश्व को प्रकाशमय कर देनेवाले (नरेंद्र ) स्वामीजी की वर्षगांठ पर हमारी कोटि कोटि शुभकामनायें व बधाई। आइये, इनका अनुसरण कर जीवन को तमस मुक्त, प्रकाशयुक्त करने का संकल्प लें।
युवाओं के शक्तिपुंज और आदर्श तथा प्रेरक संत स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के दत्त परिवार में 12 जनवरी 1863 ईसवीं को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त कई गुणों से विभूषित थे। वे अंग्रेजी एवं फारसी भाषाओं में दक्ष थे। बाइबल उनका रूचि का ग्रंथ था। स्वामी जी के पिता संगीतप्रेमी भी थे। अतः पिता विश्वनाथ की इच्छा थी कि उनका पुत्र नरेंद्रनाथ भी संगीत की शिक्षा ग्रहण करें। स्वामी विवेकानंद की माता बहुत ही गरिमायी व धार्मिक रीति-संस्कृति वाली महिला थीं। उन्हें गरिमा किसी राजवंश की जैसी थी। ऐसे सह्दय परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ और फिर उन्होंने सारे विश्व को हिलाकर रख दिया तथा भारत के लिए महिला और गरिमा से भरे एक नये युग का सूत्रपात किया।
यह बालक नरेंद्र नाथ बचपन में ही बहुत अधिक शरारती थे किन्तु इनमे अशुभ लक्षण नहीं दिखलायी पढ़ रहे थे। सत्यवादिता उनके जीवन का मेरूदंड थी। वे दिन में खेलों में मगन रहते थे और रात्रि में ध्यान लगाने लग गये थे। ध्यान के समय उन्हें अदृभुत दर्शन प्राप्त होने लग गये। समय के साथ उनमें और परिवर्तन दिखलायी पड़ने लगे। वे अब बौद्धिक कार्यों को प्राथमिकता देने लगे। पुस्तकों का गहन अध्ययन करने लग गये थे। सार्वजनिक भाषणों में भी उपस्थित रहने लगे तथा बाद में, उन भाषणों की समीक्षा करने लगे, वे जो भी सुनते थे उसे वे अपने मित्रों के बीच शब्दश: वैसा ही सुनाकर सबको आश्चर्यचकित कर देते थे। उनकी पढ़ने की गति भी बहुत तीव्र थी तथा वे जो भी पढ़ाई करते उन्हें अक्षरशः याद हो जाया करता था। पिता विश्वनाथ ने अपने पुत्र की विद्वता को अपनी ओर खींचने का प्रयास प्रारंभ किया। वे उसके साथ घंटों ऐसे विषयों पर चर्चा करते, जिनमें विचारों की गहराई, सूक्ष्मता और स्वस्थता होती।
बालक नरेंद्र ने ज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति कर ली थी। उन्होंने तत्कालीन एंट्रेस की कक्षा तक पढ़ाई के मध्य ही अंग्रेजी और बांग्ला साहित्य के सभी ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने सम्पूर्ण भारतीय इतिहास व हिंदू धर्म का भी गहन अध्ययन कर लिया था। कालेज की पढ़ाई के बीच सभी शिक्षक उनकी विद्वता को देखकर आश्चर्यचकित हो गये थे। अपने कालेज जीवन के प्रथम दो वर्षों में ही पाश्चात्य तर्कशास्त्र के सभी ग्रंथों का गहन अध्ययन कर लिया था। इन सबके बीच नरेंद्र का दूसरा पक्ष भी था। उनमें आमोद-प्रमोद करने की कला थी, वे सामाजिक वर्गों के प्राण थे। वे मधुर संगीतकार भी थे। सभी के साथ मधुर व्यवहार करते थे। उनके बिना कोई भी आयोजन पूरा नहीं होता था। उनके मन में सत्य को जानने की तीव्र आकांक्षा पनप रही थी। वे सभी सम्प्रदायों के नेताओं के पास गये किन्तु कोई भी उन्हें संतुष्ट नहीं कर सका।
1881 में नरेंद्र नाथ पहली बार रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आये। रामकृष्ण परमहंस मन में ही नरेंद्र को अपना मनोवांछित शिष्य मान चुके थे। प्रारंभ में वे परमहंस की ईश्वरवादी पुरुष के रूप में मानने को तैयार न थे। पर धीरे-धीरे विश्वास जमता गया। रामकृष्ण जी समझ गये थे कि नरेंद्र में एक विशुद्ध चित साधक की आत्मा निवास कर रही है। अतः उन्होंने उस युवक पर अपने प्रेम की वर्षा करके, उन्हें उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूति के पथ में परिचालित कर दिया। 1884 में बीए की परीक्षा के मध्य ही उनके परिवार पर संकट आया जिसमें उनके पिता का देहावसान हो गया। 1885 में ही रामकृष्ण को गले का कैंसर हुआ जिसके बाद रामकृष्ण ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी तथा उसके बाद ही उनका नाम स्वामी विवेकानंद हो गया। 1886 में स्वामी रामकृष्ण ने महासमाधि ली। वे स्वामी विवेकानंद को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर गये। 1888 के पहले भाग में स्वामी विवेकानंद मठ से बाहर निकले और तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। काशी में उन्होंने तैलंगस्वामी था भास्करानंद जी के दर्शन किये। वे सभी तीर्थों का भ्रमण करते हुए गोखरपुर पहुचें। यात्रा में उन्होंने अनुभव किया जनसामान्य में धर्म के प्रति अनुराग में कमी नहीं है। गोरखपुर में स्वामी जी को पवहारी बाबा का सान्निध्य प्राप्त हुआ। फिर वे सभी तीर्थो, नगरों आदि का भ्रमण करते हुए कन्याकुमारी पहुंचे। यहां श्री मंदिर के पास ध्यान लगाने के बाद उन्होंने भारतमाता के भावरूप में दर्शन हुए और उसी दिन सें उन्होंने भारतमाता के गौरव को स्थापित करने का निर्णय लिया। 
स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शिकागों में आयोजित धर्मसभा में हिेदुत्व की महानता को प्रतिस्थापित करके पूरे विश्व को चौंका दिया। उनके व्याख्यानों को सुनकर, पूरा अमेरिका ही उनकी प्रशंसा से मुखरित हो उठा। न्यूयार्क में उन्होंने ज्ञानयोग व राजयोग पर कई व्याख्यान दिये। उनसे प्रभावित होकर हजारों अमेरिकी उनके शिष्य बन गये। उनके लोकप्रिय शिष्यों में भगिनी निवेदिता का नाम भी शामिल है। स्वामी जी ने विदेशों में हिंदू धर्म की पताका फहराने के बाद भारत वापस लौटे। स्वामी विवेकानंद हमें अपनी आध्यात्मिक शक्ति के प्रति विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे राष्ट्र निर्माण से पहले मनुष्य निर्माण पर बल देते थे। अतः देश की वर्तमान राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए, देश के युवावर्ग को स्वामी विवेकानंद के विषय एवं उनके साहित्य का गहन अध्ययन करना चाहिये। युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अवश्य ही लाभान्वित होगी। 
स्वामी विवेकानंद युवाओं को वीर बनने की प्रेरणा देते थे। युवाओं को संदेश देते थे कि बल ही जीवन हैं और दुर्बलता मृत्यु। स्वामी जी ने अपना संदेश युवकों के लिए प्रदान किया है। युवावर्ग स्वामी जी के वचनों का अध्ययन कर उनकी उद्देश्य के प्रति निष्ठा, निर्भीकता एवं दीन-दुखियों के प्रति गहन प्रेम और चिंता से अत्यंत प्रभावित हुआ है। युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त अन्य कोई अच्छे मित्र, दार्शनिक एवं मार्गदर्शक नहीं हो सकता है। नवीन भारत के निर्माताओं में स्वामी विवेकानंद का स्थान सर्वोपरि हैं। ऐसे महानायक स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को अपने जीवन का त्याग किया।
13 जन, 2013 से 2014 जन्म शतार्द्ध (150 वीं ) वर्षगांठ संपन्न हुई। 
आप सभी को लोहड़ी तथा मकर संक्रांति पर्व की सपरिवार बहुत बहुत बधाई।
इतिहास को सही दृष्टी से परखें। गौरव जगाएं, भूलें सुधारें।
आइये, आप ओर हम मिलकर इस दिशा में आगे बढेंगे, देश बड़ेगा। तिलक YDMS
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है | जीने अथवा आगे बढ़ने का मार्ग मिलेगा, जब (भारत व इंडिया में अंतर) समझेंगे। 
मेरा भारत, मैं भारत का (Not India)
यह सम्बन्ध बनता है,  देश व समाज की जड़ों से जुड़कर।
क्या आप भी स्वयं को देश की जड़ों से जुड़ा पाते हैं ? तो आपका यहाँ स्वागत है !
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(भारत व इंडिया में अंतर क्या है, जाने ?) 
अधिक जानकारी के लिए यहाँ समूह बटन दबाएँ -

मेरा भारत, मैं भारत का (Not India)

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

नकारात्मक बिकाऊ मीडिया जनता को भ्रमित करे, तब जो 40 पृष्ठ में न मिल सके वो 4से 6 पृष्ठ में पायें 

नकारात्मक बिकाऊ मीडिया का सकारात्मक राष्ट्रवादी विकल्प युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. 
2001 से युगदर्पण समाचारपत्र द्वारा सार्थक पत्रकारिता और 2010 से हिंदी ब्लॉग जगत में विविध विषयों के 28 ब्लॉग के माध्यम व्यापक अभियान चला कर 3 वर्ष में 60 अब 70+ देशों में पहचान बनाई है। तथा काव्य और लेखन से पत्रकारिता में अपने सशक्त लेखन का विशेष स्थान बनाने वाले तिलक राज के 10 हजार पाठकों में लगभग 2000 अकेले अमरीका में हैं।  यदि आप भी मुझसे जुड़ना चाहते हैं, तो आपका हार्दिक स्वागत है, संपर्क करें औऱ अपने सम्पर्क सूत्र सहित बताएं कि आप किस प्रकार व किस स्तर पर कार्य करना चाहते हैं, तथा कितना समय देना चाहते हैं ? आपका आभार अग्रेषित है। -तिलक, संपादक युगदर्पण मीडिया समूह  09910774607, 07531949051 
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सोमवार, 11 जनवरी 2016

स्व लाल बहादुर शास्त्री पुण्य तिथि

स्व लाल बहादुर 
शास्त्री 
जन्म 2 अक्टू 1904 वाराणसी, 
देहावसान 11 जन 1966 ताशकंद, उज्बेकिस्तान 
भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री, 
कृतज्ञ राष्ट्र आपको पुण्य तिथि पर (50 वर्ष) 
शत शत नमन व स्मरण करता है, 
युदमीस YDMS 2016, 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

राम मंदिर अयोध्या, विहिप और शर्मनिरपेक्ष व्यवस्था

राम मंदिर अयोध्या, विहिप और शर्मनिरपेक्ष व्यवस्था 
तिलक  
21 दिसं  15 न दि  
जय श्री राम, विश्व हिंदू परिषद (विहपि) की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु देशभर से पत्थर इकट्ठा करने का राष्ट्रव्यापी अभियान घोषित करने के प्राय: छह माह बाद, रविवार को पत्थरों से लदे दो ट्रकों के शहर में प्रवेश करने पर जिला पुलिस सतर्क हो गई और स्थिति पर ध्यान रख रही है। विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा, ‘‘अयोध्या में विहिप की संपत्ति राम सेवक पुरम में दो ट्रकों से पत्थर उतारे गये हैं और राम जन्म भूमि के अध्यक्ष महंत नृत्य दास की ओर से ‘शिला पूजन’ किया गया है।’’ इसमें कुछ भी गलत नहीं है। 
इस बीच, महंत नृत्य गोपाल दास ने बताया कि मोदी सरकार से ‘‘संकेत’’ मिले हैं कि मंदिर का निर्माण ‘‘अब’’ कराया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण किया जाये। आज अयोध्या में ढेर सारे पत्थर पहुंच गये हैं। अब पत्थरों का पहुंचना जारी रहेगा।" विहिप मुख्यालय पर पत्थरों के पहुंचने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फैजाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मोहित गुप्ता ने कहा, ‘‘हम हालात पर पैनी निगाह रख रहे हैं। पत्थर लाए गए हैं और एक निजी परिसर में रखे गए हैं। इस घटना से यदि शांति भंग होती है या सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ता है, तो हम निश्चित रूप से कार्रवाई करेंगे।’’ 
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का अपना प्रण दोहराते हुए विहिप ने जून में घोषित किया था कि वह मंदिर निर्माण के लिए देश भर से पत्थर इकट्ठा करेगी। विहिप ने मुस्लिम समुदाय को भी चेतावनी दी थी कि वह राम मंदिर निर्माण में कोई अड़ंगा न लगाए। विहिप के दिवंगत नेता अशोक सिंघल ने गत माह कहा था, ‘‘राम मंदिर निर्माण के लिए प्राय: 2.25 लाख क्यूबिक फुट पत्थरों की आवश्यकता है और प्राय: 1.25 लाख क्यूबिक फुट पत्थर अयोध्या स्थित विहिप मुख्यालय में तैयार रखे हैं। शेष एक लाख क्यूबिक फुट पत्थर देश भर से हिंदू श्रद्धालुओं से इकट्ठा किए जाएंगे।’’
एक ओर हमारी शर्म निरपेक्ष व्यवस्था के प्रशासन ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि वह इस कदम का विरोध करेगा, क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है। उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के प्रमुख सचिव देवाशीष पांडा ने कहा था कि राज्य सरकार राम मंदिर के लिए अयोध्या में पत्थर नहीं आने देगी। उन्होंने कहा था, ‘‘चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, अत: सरकार अयोध्या मुद्दे के बारे कोई नई परंपरा शुरू करने की अनुमति नहीं देगी।’’
दूसरी ओर प्रदेश के मुस्लिम समाज की बदलती सोच है जिसमे BAP की अध्यक्षा, नज्मा प्रवीन ने कहा कि यदि मुस्लिम से सम्मान व प्रगति चाहते हैं तो करोड़ों हिन्दुओं की राम के प्रति श्रद्धा से खेल कर नहीं, उसका सम्मान करते, घृणा के स्थाई अंत के लिए राम की जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण में सहभागी बन सद्भाव के प्रति उन्हें भी रूचि दिखाने का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। 
एक अन्य हैं मुस्लिम महिला फाउंडेशन की अध्यक्षा, नाज़नीन अंसारी कहती हैं, "राम से युद्ध करनेवाले रावण को लोगों ने माफ़ नहीं किया, तो राम मंदिर को तोड़ने वाले बाबर और उसके समर्थकों को लोग कैसे माफ़ करेंगे?  तथा नाज़नीन अंसारी के अनुसार मंगोल आक्रमणकारी बाबर के पूर्वज हलाकू ने 1258 में बगदाद के खलीफा सहित हजारों मुसलमानों की हत्या की थी तथा बाबर ने 1528 में राम मंदिर तोड़ कर घृणा के बीज बोये थे। सब जानते हैं भारतीय मुसलमानों का मंगोल से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार मंदिर निर्माण का विरोध करने वाले हिन्दू तो क्या मुसलमानों के भी हितचिंतक नहीं शत्रु हैं। 
दशकों की खुदाई और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने बिना शक के साबित कर दिया कि मंदिर को नष्ट करके मस्जिद के निर्माण में बाबर का एक नापाक हित था। जिस प्रकार आक्रान्ताओं ने अन्य सहस्त्रों मंदिरों का  विध्वंस किया था। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि मस्जिद से पूर्व वहां मंदिर था। अत: अब इलाहबाद उच्च न्यायालय को न्यायोचित निर्णय देने में विलम्ब का कोई कारण नहीं रहा। 
आप बताएं कि आप बाबर समर्थक शर्मनिरपेक्षता के साथ हैं ? अन्यथा मंदिर विरोधी शर्मनिरपेक्षों को मुहतोड़ उत्तर देकर बाधा कड़ी करने वालों का मुँह बंद कर, समाधान चाहने वालों को मानसिक समर्थन देवें।
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका;
 विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
 योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

विधेयक पारित, संगीन अपराधों में किशोर आयु 16

विधेयक पारित, संगीन अपराधों में किशोर आयु 16 
तिलक  
22 दिसं
देश की आत्मा को झकझोर देने वाले निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के तीन वर्ष बाद संसद ने आज किशोर न्याय से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक कोस्वीकृति दे दी जिसमें बलात्कार सहित संगीन अपराधों के मामले में कुछ शर्तों के साथ किशोर माने जाने की आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। इसमें किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन सहित कई प्रावधान किये गये हैं। देश में किशोर न्याय के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डालने वाले किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक को आज राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक पर लाये गये, विपक्ष के सारे संशोधनों को सदन नेअस्वीकार कर दिया। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है।
विधेयक को व्यापक विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किये जाने के विरोध में माकपा ने सदन से बहिर्गमन किया। इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किये गये हैं जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है। इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं। उन्होंने संगीन अपराध के लिए किशोर माने जाने की आयु 18 से 16 वर्ष करने पर कुछ सदस्यों की आपत्ति पर कहा कि अमेरिका के कई राज्यों, चीन, फ्रांस सहित कई देशों में इन अपराधों के लिए किशोर की आयु नौ से लेकर 14 वर्ष तक की है। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस के आंकड़ों को माना जाए तो भारत में 16 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अपराध का चलन तेजी से बढ़ा है। मेनका ने किशोर न्याय बोर्ड में किशोर आरोपी की मानसिक स्थिति तय करने की लंबी प्रक्रिया के संदर्भ में कहा कि ऐसा प्रावधान इसीलिए रखा गया है जिससे किसी निर्दोष को दंड न मिले। सदन में आज इस विधेयक को प्रस्तुत करने और इस पर चर्चा के मध्य 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के माता पिता भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे।
इससे पूर्व इस विधेयक पर चर्चा के मध्य विभिन्न दलों के सदस्यों ने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाने पर बल दिया। सदस्यों ने किशोर अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर भी चिंता जतायी और बाल सुधार गृहों की स्थिति में सुधार के लिए सरकार को उचित कदम उठाने को कहा।
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2015 सदन में चर्चा के लिए रखते हुए कहा कि इसके प्रावधानों से निर्भया मामले में भले ही प्रभाव नहीं होता हो किन्तु आगे के मामलों में नाबालिगों को रोका जा सकता है। उन्होंने सदस्यों से इस विधेयक को पारित करने की अपील करते हुए कांग्रेस से कहा कि यह विधेयक उनका है। उन्होंने कहा कि इसका आरम्भ आपने किया था और हम इसे पूर्ण कर रहे हैं। विधेयक के प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक समग्र विधेयक है। बाल अपराधों के मामले में आयु की सीमा कम किए जाने के प्रावधान वाले इस विधेयक में किशोर न्याय बोर्ड को कई अधिकार दिए गए हैं। मेनका गांधी ने कहा कि किसी भी नाबालिग दोषी को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा। किशोर न्याय बोर्ड यह निर्णय करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधिक घटनाओं में किसी किशोर अपराधी के लिप्त होने के पीछे उसकी मानसिकता क्या थी। बोर्ड यह तय करेगा कि यह कृत्य वयस्क मानसिकता से किया गया है या बचपने में। उन्होंने कहा कि ऐसे नाबालिग अपराधी को भी उच्च अदालतों में अपील करने का अधिकार होगा।
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि यह विधेयक गत सत्र में और इस सत्र में भी कई दिन चर्चा के लिए सूचीबद्ध किया गया था। किन्तु सदन में हंगामे के कारण इस पर चर्चा नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि ऐसी बात की जा रही है कि सरकार इस विधेयक को लाने की इच्छुक नहीं थी। उन्होंने हालांकि कहा कि यह विधेयक विगत काल से प्रभावी नहीं होगा।
विधेयक पर चर्चा का आरम्भ करते हुए विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि आयु को लेकर पूरे विश्व में अलग अलग राय है और इस संबंध में विभिन्न देशों के अपने कानून हैं। किन्तु हमें भारत में अपने समाज के हिसाब से देखना है। विभिन्न प्रकार के अपराधों में किशोरों का उपयोग किए जाने का उल्लेख करते हुए आजाद ने सुझाव दिया कि उन्हें जेल में अलग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें कट्टर अपराधियों के साथ रखेंगे, तो किशोर अपराधियों में सुधार की सम्भावना कम हो जाएगी। 
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक